देश का दर्द
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह15 Feb 2021
दर्द वहाँ है
जहाँ सामर्थ्य नहीं है
दर्द उसे है
जो विवश है
लाचार है
अक्षम है
जिसे दर्द है
वह रो सकता है रोता है
चीख़ सकता है चीख़ता है
अपनी विवशता अक्षमता पर
सर धुन सकता है सर धुनता है
दर्द वहाँ नहीं है
जहाँ सामर्थ्य है
वहाँ दर्द का जबाब है
दर्द का इलाज है
दूसरों का दर्द
भला कौन समझता है
किसे फ़ुर्सत है
किसे ज़रूरत है
यदि कोई हमदर्द है
तो ज़रूरी नहीं वह हमदर्द ही हो
जिसे दर्द है वह सोच नहीं सकता
जो सोंच सकता है उसे दर्द नहीं है
तो भला कौन सोचेगा
भला क्यों सोचेगा
देश का दर्द
देश के लोगों का दर्द
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