झूठ का प्रमेय
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह1 Jun 2020
झूठ का प्रमेय
कभी सिद्ध नहीं होता
क्योंकि झूठ का कोई
गणित नहीं होता
झूठ की कोई
व्यवहारिकता
नहीं होती
झूठ
या तो झूठ होता है
या फिर उतना ही रहता है
जितना वह स्वयं के बारे में कहता है
संभवतः थोड़ा ज़्यादा ही
मगर कम रत्ती भर भी नहीं
स्थापित झूठ के वक्ता
एवं श्रोता की
सिर्फ़ मंशा समान होती है
उनके बौद्धिक बल
समान नहीं होते
वक्ता की बुद्धि जितनी ढीठ कुटिल
और प्रचंड होनी चाहिए
श्रोता की बुद्धि उतनी हीं भोली
भयभीत प्रश्नहीन और समर्पित
वरना झूठ
झूठा पड़ जाएगा
क्योंकि झूठ का
कोई गणित नहीं होता
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