लुटेरे
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह15 Oct 2020 (अंक: 167, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
लुटेरे कहीं सच्चे थे
आज के कर्णधार झूठे हैं
 
लुटेरे हमें लूटने आए
लूटकर चले गए
लुटेरों ने हमें
तबाह कर देने
हमसे हमारी रोटी 
छीन लेने की बातें कीं
छीन ली
 
कर्णधारों ने हमें
बसाने की बातें कीं
हमारे लिए काम 
और हमारी रोटी की बातें कीं
नहीं दीं
 
हमें फुसला देते हैं
उलझा देते हैं
हमें डाँट देते हैं
हमारे हिस्से की रोटी
हमारे हिस्से का काम
हमारे नाम से 
अपने जीजा साले
भाई-भतीजे
चमचे चापलूस
और बंदी चारणों में 
बाँट लेते हैं
 
लुटेरे कहीं सच्चे थे
आज के कर्णधार झूठे हैं
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