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माँ (सुशील यादव)

कब अलंघ्य लगता मुझे, कोई बड़ा पहाड़।
माँ तेरी आवाज़ थी, मेरी कंठ दहाड़॥

 

मुझमें साहस जो भरा,पाया जोश अकूत।
तेरी ममता मोल क्या, देवी नभ की दूत॥

 

किया क्षमा हर भूल को, हर ग़लती को माफ़।
तेरे निर्मल हृदय जल, छवि दिखती थी साफ़॥

 

केवल  क्षमता से भरी, नहीं अकेली आप। 
माँ बिछुड़ा मेरी तरह, जानेगा संताप॥

 

अब तो विषम विकल घड़ी, काया आती याद।
माँ गांधारी से बनी, दिव्य दृष्टि फ़ौलाद॥

 

हर जननी को सुत कहे, मिले दुबारा कोख।
दर्द निवारक माँ रही, जैसे स्याही सोख॥

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