मेरा घर
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह1 Sep 2020
मेरे घर की छत है
फ़र्श है
दीवारें नहीं है
कोई खंभा भी नहीं है
है न अद्भुत मेरा घर
विश्व की सारी प्राकृतिक सम्पदा
साधन सौंदर्य व छटाओं से
सजा है मेरा घर
मेरे घर में नदियाँ है
सागर हैं पर्वत हैं झरने हैं
बड़े-बड़े जंगल भी हैं
मेरे घर में गाँव हैं शहर हैं
नगर हैं महानगर हैं
बड़े-बड़े देश महादेश भी हैं
चर-अचर कोई जीव नहीं
जो मेरे घर के प्रांगण में नहीं
कोई वृक्ष कोई लता
ऐसा कोई पुष्प नहीं
जो मेरे आँगन में नहीं
चिड़ियों को उड़ने के लिए
उन्मुक्त गगन है
मछलियों को तैरने के लिए
अनगिनत नदियाँ
अथाह महासागर हैं
मेरे घर में
दुनिया का हर मौसम है
हर रंग है
दिन को सूरज
और रात को चंद्रमा से
मेरा घर प्रकाशित है
मेरे घर के छत में
स्वयं तारे टिमटिमाते हैं
आकाशगंगाएँ झिलमिलाती हैं
तारों की अगिनत क्षीर नदियाँ
निहारिकाएँ नज़र आती हैं
जग के समस्त प्राणी
मेरे घर के सदस्य हैं
जग की सारी संपदा
मेरे घर की संपदा है
क्यों न हो
यह धरा मेरे घर की सतह है
मेरा आँगन है
वह आकाश मेरे घर का छत है
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