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प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 008

1.
जाने
किस बात का
मन में, रह गया
मलाल अब तक . . . .
लड़कर तक़दीर से
भला कोई,
जीता है अब तक . . . .?
2.
रूह, ढूँढ़े है वो दर,
जहाँ
सुकून मिल जाये…...
पर
हाय! री क़िस्मत!
तू पहले ही पहुँच जाए...!
3.
ज़ख़्म उसने दिए
तो मरहम भी
वही देगी . . . ..
ज़िंदगी है,
कुछ दे, न दे,
दग़ा, नहीं देगी . . . !
4.
जो वादे
किये भी न थे,
उसने, वो भी
निभा डाले . . . 
मेरे महबूब को
क्या ख़ूब बनाया
बनाने वाले . . . .!
5.
जाने
कौन सी थी
वो बात,
जो मन में
चुभ गई . . . 
काँटा
निकल गया,
पर टीस 
रह गई . . . !
6.
इन परिंदों को,
जाने कौन
पनाह देता है . . . ?
आदमी
हो नहीं सकता,
वो सिर्फ़,
दग़ा देता है . . . !
7.
तुम
ख़्वाबों को
तरसते हो,
सोचो . . . 
जाने
कितने,
बिछौनों को
तरसते होंगे...!
8.
क्या पाया
अब तक,
क्या
खोया हमनें . . . 
इस
उलझन में,
लो, नींद भी
गँवाई हमने . . . !
9.
आती है
तेरी याद,
दिल, चुपके से
रोता है . . . 
क्या तेरे
परदेस में भी,
तन्हाई-जैसा
कुछ होता है . . . ?
10.
राख के ढेर को
बेकार ही,
कुरेदा न करो . . . 
चिंगारी, कोई भड़की
तो
क़यामत होगी . . . !
11.
नशा
तो है नशा,
इश्क़, इससे
जुदा नहीं . . . 
मतवाला
कोई कहलाया,
तो
दीवाना है कोई . . . !
12.
कहा था
यादों से,
न आना, न सताना
मुझको . . . 
ज़िद की मारी हैं
बैरन, न मानी,
चली आईं
देखो . . . !

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