तुम्हारी चले तो
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह15 Feb 2021
हमारे हिस्से का खेत
हमारे हिस्से के बाग़
हमारे हिस्से का वन
तुम और तुम्हारा धन
कर लेता है अतिक्रमण
लिखवाकर अपना नामपट्ट
बनाते हो फ़ार्म हाउस
लगवा देते हो चाहारदीवारी
बैठा देते हो पहरा
और हमारा प्रवेश
कर देते हो निषेध
यह संकेत है
तुम्हारी चले तो
तुम भरवा दो सारे खुदे हुए कुँए
परमार्थ तालाब
अपने घेरे में ले लो प्रकृति की झीलें
दूषित करवा दो नदियाँ नाले
बोतल में बंद कर दो
वर्षा और ओस का पानी
नलियों में भर लो हवा
हमारी साँसें हमारा जीवन
और बेचने लगो ऑक्सीजन
तुम्हारी चले तो
हाँ! तुम ये करोगे
साँसों का भी व्यवसायीकरण
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