हिंदी दिवस
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु राजेश ’ललित’1 Oct 2021 (अंक: 190, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
हिंदी दिवस,
चौदह सितम्बर,
को प्रतिवर्ष
हिंदी पढ़ते !
पास होने के लिये।
नहीं समझते!
हिंदी भाषा है;
बोलचाल हमारी;
धरोहर है।
हिंदी हमारी
पढ़ो लिखो औ'बोलो
भाग्य खोलो
हिंदी को करें
बारंबार नमन
करें मनन
हिंदी नहीं है!
बच्चे अब पढ़ते।
सिर्फ रटते।
हिंदी क्यों हो?
बच्चों से नाराज़
थोड़ी उदास।
हिंदी कहाँ हो?
भारत के दिल में
हर घर में
हिंदी हमारी,
कहते राज भाषा;
क, ख-न आता
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
राजेश'ललित 2021/09/17 02:08 PM
आदरणीय सुमन जी घई; आपके द्वारा साहित्अय कुञ्ज के अक्तूबर प्रथम अंक में हिंदी दिवस पर लिखी हाईकु को प्रकाशित करने पर हार्दिक आभार एवं धन्यवाद। राजेश'ललित'
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंधे की लाठी
- अभिमन्यु फँसा फिर से
- आवारा हो गया यह शहर
- आषाढ़ के दिन
- इतवारी रिश्ते
- कुछ विचार
- कृष्ण पक्ष
- खोया बच्चा
- गुटर गूँ-गुटर गूँ
- चंदा मामा दूर के
- चलो ढूँढ़ें उस चिड़िया को
- चाँद, सूरज और तारे
- जानवर और आदमी
- जी, पिता जी
- झुर्रियाँ
- झूठ की ओढ़नी
- टूटा तटबंध
- ठग ज़िन्दगी
- डूबती नाव
- दीमक लगे रिश्ते
- धान के खेत में; खड़ा बिजूका
- नज़रिया
- पतझड़ और बसंत
- पेड़ और आदमी
- पोरस
- बरखा बारंबार
- बहुत झूठ बोलता है?
- बाँझ शब्द
- बुद्ध नया
- बुधिआ को सुई
- भीष्म की शब्द शैय्या
- भूख (राजेश ’ललित’)
- मकान
- मजमा
- मम्मी, इंडिया और मैं
- मरना होगा
- माँ, हुआ रुआँसा मन
- माँ
- मैं नहीं सिद्धार्थ
- यादें
- ये मत कहना
- राम भजन कर ले रै प्राणी
- शेष दिन
- सपने बुन लो
- सरकार
- सर्दी और दोपहर
- सलीब
- सूखा बसंत
- सूनापन
- सूरज की चाह
- हम भीड़ हैं
- हाथ से फिसला दिन
- हादसे
- ख़्याली पुलाव
चिन्तन
बाल साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
सांस्कृतिक आलेख
कविता - क्षणिका
- कफ़न
- कौन उलझे?
- टीस
- टूटे घरौंदे
- डरी क़िस्मत
- दुखों का पहाड़
- देर ही देर
- परेशानियाँ
- पलकों के बाहर
- पेड़
- प्रकृति में प्रेम
- बंद दरवाज़ा
- भटकती मंज़िल
- भीगा मन
- भूकंप
- मुरझाये फूल
- राजेश 'ललित' – 001
- राजेश 'ललित' – 002
- राजेश 'ललित' – 003
- राजेश 'ललित' – 004
- राजेश 'ललित' – 005
- राजेश 'ललित' – 006
- लड़ाई जीवन की
- वक़्त : राजेश ’ललित’
- शरद की आहट
- शून्य
- समय : राजेश 'ललित'
- सीले रिश्ते
- सूखा कुआँ
- सूखी फ़सल से सपने
- हारना
स्मृति लेख
सामाजिक आलेख
कविता - हाइकु
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Vivek 2021/09/18 08:46 AM
आदरणीय शर्मा जी प्रणाम हिंदी दिवस पर आपकी कविता पढ़ कर मन खुश भी हुआ और उदास भी लेकिन आप अच्छा कार्य ऐसे ही करते रहे और लोगों की आंखें खोलते रहिए