भागो, भागो-चूहा आया
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता राजेश ’ललित’15 Jun 2024 (अंक: 255, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
आर्या आर्या
भागो भागो
चूहा आया
इधर भागा
उधर भागा
उस कोने से
निकल गया है
अब पता नहीं
किधर को भागा?
फिर न कहना
नहीं बताया!
चूहा आया
चूहा आया
बड़ी बड़ी
मूँछें हैं उसकी
गोल गोल हैं आँखें
बड़े बड़े दो
दाँत है उसके
खाने को
रोटी दी उसको
कुतर कुतर
कर खाया
चूहा आया
चूहा आया
परेशान हो
जाते सब जब
चूहा घर में आता
किताब कुतर
कभी कमीज़
कुतर कर
झट से फुर्र फुर्र
हो जाता
नहीं डरता
किसी डंडी से
पर बिल्ली
ने ख़ूब भगाया
आर्या आर्या
चूहा आया
चूहा आया
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राजनन्दन सिंह 2024/06/15 09:22 AM
बाल कविता अच्छी है। वैसे बच्ची को चूहे से डराना थोड़ा अटपटा लगा। विशेषकर उस आर्य भूमि के बच्चों को, जिस धरती के बच्चे कभी शेर को पकड़ कर उसका दाँत गिन लेते थे।