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पतझड़ और बसंत

पतों को, 
झड़ जाने दो; 
इनका चक्र, 
जीवन पूर्ण हुआ; 
तुमने जी लिया, 
जितना जीना था। 
 
नवजीवन को आने दो, 
नव पात आने दो, 
हरियाली छा जीने दो। 
बसंत आया है; 
बहार ज़रा नयी है, 
इसको खिलने का, 
अवसर दो। 
 
फागुन है, 
रंग पावन हैं, 
कण कण में, 
बिखर जाने दो; 
ज़रूरी नहीं, 
इंद्रधनुष वर्षा में हो; 
प्रकृति को रूप, 
अपना दिखाने दो। 
 
खिले हैं फूल, 
रंग बिरंगे, 
वहाँ यहाँ, 
जीवन है क्षणभंगुर; 
समझने दो, 
समझाने दो, 
सुबह खिले, 
दिन भर, 
हिले डुले, 
थोड़ा इन्हें, 
मुस्कुराने दो। 
झड़ जाना है; 
रात होने तक, 
कल कोई जन्म; 
नवांकुर लेगा, 
उपवन खिलेगा, 
महकेगा, 
चक्र जीवन का; 
चलता रहेगा, 
पतझड़ है तो, 
नवपात भी होगा।

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