डूबती नाव
काव्य साहित्य | कविता राजेश ’ललित’1 Nov 2023 (अंक: 240, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
भगवन, मेरी नाव डूब
रही है।
बीच मझधार में
अटक गई है!
ज़रा पार लगा दो!
थोड़ा उस तरफ़
ज़्यादा झुकी है
ज़रा संतुलन बैठा दो!
नाव में छेद भी हो गया है।
पानी भर रहा है!
इसमें उँगली न सही
कोई लकड़ी ही
लगा दो।
ये हिचकोले भी खा
रही है।
तूफ़ान तो गुज़र गया है ।
पर मुझे अधर में लटका गया है।
लगाना है तो लगाओ
नहीं तो पानी यहीं
गहरा है
यहीं डुबा दो!
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Vivek 2023/11/04 07:28 AM
आदरणीय राजेश ललित जी अति उत्तम