नज़रिया
काव्य साहित्य | कविता राजेश ’ललित’1 Dec 2023 (अंक: 242, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
सरकार ने नज़र
बनाई हुई है।
स्थिति नियंत्रण में है
परिस्थितियाँ भी नियंत्रित हैं।
अर्थ का अनर्थ न करें।
स्थितियाँ तेज़ी से सुधर रही हैं।
मतलब
सरकार की नज़र भी
ठीक है
और नज़रिया भी ठीक है
ज़रा धैर्य रखें
सब ठीक हो जायेगा॥
यह आप पर निर्भर करता है
आपक किस नज़र से
देखते हैं!
आपको स्थिति ठीक नहीं लग रही!
आप को निकट दृष्टि दोष है!
कहा न, धैर्य रखिये;
हर चीज़ में आप को दोष ढूँढ़ने की आदत है!
ज़रा दूरदृष्टा बनें;
नज़र भी बदलें
और नज़रिया भी!
सब ठीक हो जाएगा।
सरकार क़दम उठा
रही है,
इसका मतलब सरकार चल रही है।
अच्छे से चल रही है।
हर क़दम सरकार ही
उठाये;
कुछ क़दम जनता को
भी उठाने चाहिए
आप भी क़दमताल
करिये
आप भी स्वस्थ रहेंगे
और समाज भी
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंधे की लाठी
- अभिमन्यु फँसा फिर से
- आवारा हो गया यह शहर
- आषाढ़ के दिन
- इतवारी रिश्ते
- कुछ विचार
- कृष्ण पक्ष
- खोया बच्चा
- गुटर गूँ-गुटर गूँ
- चंदा मामा दूर के
- चलो ढूँढ़ें उस चिड़िया को
- चाँद, सूरज और तारे
- जानवर और आदमी
- जी, पिता जी
- झुर्रियाँ
- झूठ की ओढ़नी
- टूटा तटबंध
- ठग ज़िन्दगी
- डूबती नाव
- दीमक लगे रिश्ते
- धान के खेत में; खड़ा बिजूका
- नज़रिया
- पतझड़ और बसंत
- पेड़ और आदमी
- पोरस
- बरखा बारंबार
- बहुत झूठ बोलता है?
- बाँझ शब्द
- बुद्ध नया
- बुधिआ को सुई
- भीष्म की शब्द शैय्या
- भूख (राजेश ’ललित’)
- मकान
- मजमा
- मम्मी, इंडिया और मैं
- मरना होगा
- माँ, हुआ रुआँसा मन
- माँ
- मैं नहीं सिद्धार्थ
- यादें
- ये मत कहना
- राम भजन कर ले रै प्राणी
- शेष दिन
- सपने बुन लो
- सरकार
- सर्दी और दोपहर
- सलीब
- सूखा बसंत
- सूनापन
- सूरज की चाह
- हम भीड़ हैं
- हाथ से फिसला दिन
- हादसे
- ख़्याली पुलाव
चिन्तन
बाल साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
सांस्कृतिक आलेख
कविता - क्षणिका
- कफ़न
- कौन उलझे?
- टीस
- टूटे घरौंदे
- डरी क़िस्मत
- दुखों का पहाड़
- देर ही देर
- परेशानियाँ
- पलकों के बाहर
- पेड़
- प्रकृति में प्रेम
- बंद दरवाज़ा
- भटकती मंज़िल
- भीगा मन
- भूकंप
- मुरझाये फूल
- राजेश 'ललित' – 001
- राजेश 'ललित' – 002
- राजेश 'ललित' – 003
- राजेश 'ललित' – 004
- राजेश 'ललित' – 005
- राजेश 'ललित' – 006
- लड़ाई जीवन की
- वक़्त : राजेश ’ललित’
- शरद की आहट
- शून्य
- समय : राजेश 'ललित'
- सीले रिश्ते
- सूखा कुआँ
- सूखी फ़सल से सपने
- हारना
स्मृति लेख
सामाजिक आलेख
कविता - हाइकु
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Vivek 2024/02/26 05:15 AM
आदरणीय "राजेश"ललित'जी"