बुधिआ को सुई
काव्य साहित्य | कविता राजेश ’ललित’15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
अभी तोड़ कर लाया हूँ
खेत की मेढ़ से लाया हूँ
ये मकई का मीठा भुट्टा है
अभी कच्चा है
आप यूँ ही खाइये न
डाक्टर सा'ब अब आप
सुई लगाइये न
हाथ सने हैं मिट्टी में
नहीं तो गाजर ले आता
बोरा भर रखा है
बाजरे का सिट्टा
कभी झोंपड़े पे आइये न
डाक्टर सा'ब अब आप
सुई लगाइये न
दर्द कराहता है
पोर पोर में
कह नहीं पाता
अभावों के शोर में
कुछ तो जुगत
बताइये न
डाक्टर सा'ब अब आप
सुई लगाइये न
एक गाय है
दो बछिया हैं
एक ही बेटा
दो बिटिया हैं
छोटी को कई दिन से
ताप चढ़ा है
कोई दवा बताइये न
डाक्टर सा'ब अब आप
सुई लगाइये न
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टिप्पणियाँ
Mayank Bhatnagar 2021/07/15 01:40 PM
बहुत अच्छी कविता मुझे यह पसंद आयी!
पाण्डेय सरिता 2021/07/15 12:33 PM
बहुत खूब
Sarojini Pandey 2021/07/15 09:13 AM
बढ़िया
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