प्रकृति में प्रेम
काव्य साहित्य | कविता - क्षणिका राजेश ’ललित’15 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
नदी
कल कल कल
नदी की धारा
का जल
बहता अविरल
सब बाधाओं
को पार कर
होकर प्रेम विह्वल
सागर को
मिलने को आतुर
पर्वत
खड़ा धीर
संत सा
तप करता गम्भीर
लगा कर ध्यान
क़तरा क़तरा
प्रेम बरसा रहा
आतुर हैं दोनों
पर्वत-आसमान
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