अंधे की लाठी
काव्य साहित्य | कविता राजेश ’ललित’15 Nov 2024 (अंक: 265, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
अंधे को लाठी,
चाहिए थी,
लाठी को भी
सहारा चाहिए था,
दोनों को,
एक दूसरे की,
ज़रूरत थी,
अंधे की लाठी,
टूट गयी थी,
लाठी का साथ,
छूट गया था,
दोनों एक दूसरे के बिना,
अधूरे थे।
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संजय मृदुल 2024/11/18 05:58 PM
बहुत अच्छी कविता