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उत्तरायण-दक्षिणायण

आज हम हर बात में पश्चिमी देशों की नक़ल कर उसको अपनाने की कोशिश करते हैं और उनके वैज्ञानिक विश्लेषण और विचारों को अपनाते जा रहे हैं वह चिंतनीय है क्योंकि भारतीय दर्शन और ऋषियों ने अपने सतत और चिंतन से हमें बहुत समृद्ध बनाया है। आज के विषय में हम चर्चा कर रहे हैं उत्तरायण और दक्षिणायण की। 

सर्वप्रथम हम बात कर रहे हैं उत्तरायण की। अभी १४/१५ जनवरी को मकर संक्रांति का महापर्व गया है जिसमें सूर्य (ग्रह) के रूप में मकर राशि में प्रवेश कर गया है। इसका क्या अर्थ है? संक्रांति तो प्रति माह आती है और राशि परिवर्तन होता है परन्तु मकर संक्रांति ही क्यों विशेष है? इस दिन सूर्य उत्तरायण में हो जाते हैं का अर्थ सूर्य का उत्तरी ध्रुव की ओर जाने लगता है इसका अर्थ है कि पृथ्वी पर सूर्य की गर्मी और प्रकाश का समय धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। दिन बड़े होने लगते हैं। जबकि पश्चिमी विज्ञान कहता है कि २३ दिसम्बर बड़ा दिन होता है क्योंकि इस दिन से दिन बड़े होने लगते हैं; यदि आप समाचार पत्र पढ़ते हैं तो मौसम के पृष्ठ पर जाएँ। 

इस पृष्ठ पर प्रतिदिन मौसम के साथ सूर्योदय एवं सूर्यास्त का समय भी प्रकाशित होता है यदि आप इस समाचार का विश्लेषण करेंगे तो पायेंगे कि सूर्यास्त का समय बढ़ रहा है और सूर्योदय का समय धीरे धीरे कम हो रहा है अर्थात्‌ दिन बड़े हो रहे हैं और यह परिवर्तन मकर संक्रांति के पश्चात ही होता है न कि पश्चिमी अवधारणा के अनुसार २३ दिसम्बर से। यह परिवर्तन सीधे सीधे मौसम से जुड़ा है। शरद ऋतु के पश्चात शरीर को जिस ऊर्जा की आवश्यकता होती है वह उत्तरायण में मिलना आरंभ हो जाता है। यह सिलसिला ‘कर्क संक्रांति’ तक रहता है। 

कर्क संक्रांति के पश्चात सूर्य दक्षिणायण हो जाता है। इसका अर्थ है कि सूर्य दक्षिण ध्रुव की ओर सरकने लगता है। और मौसम और दिन में परिवर्तन होने लगते हैं। मौसम धीरे धीरे ठंडा होने लगता है और दिन छोटे। सूर्य की ऊर्जा धीरे धीरे कम होने लगती है। दोनोंं संक्रांति होने का अर्थ न केवल मौसम परिवर्तन से है अपितु रोगों का भी संक्रमण काल होता है; अंक: दोनोंं संक्रांति आपको चेतावनी भी देती हैं कि आप मानसिक और शारीरिक रूप से इनका सामना करने को तैयार रहें। इसके लिए दोनोंं आयन में एक एक नवरात्र का प्रवधान है जिससे आप मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार हमें दोनों आयन का महत्त्व समझना चाहिए।

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टिप्पणियाँ

सरोजिनी पाण्डेय 2024/02/17 04:44 PM

आदरणीय ललित जी, मेरी जानकारी के अनुसार 'आयन' शब्द प्रयुक्त नहीं है ।'अयन' के आरंभ का अ स्वर उत्तर अथवा दक्षिण के अंतिम स्वर अ से संधि करके आ बनता है। अयन शब्द का अर्थ है गति, चाल। अयन समय को नापने की एक इकाई भी कहलाती है जिसका मान अर्ध वर्ष तुल्य है। दो अयन का एक वर्ष होता है।

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