टूटा तटबंध
काव्य साहित्य | कविता राजेश ’ललित’1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
दूर नदी का
किनारा था
वो न मिलना था
न मिलेगा कभी
पहुँचने से पहले
वो टूट गया
तोड़ कर तटबंध
बह निकला
सहसा ही वह टूट गया
सह न सका वह
बोझ था इतना
बंधन ही था छूट गया
नौका भी मझधार में थी
लगता जैसे भटकाव में थी
कभी इधर तो कभी उधर
डगमग जैसे झुकाव में थी
हुआ यकायक ऐसा ही कुछ
नाव का पैंदा फूट गया
किसने दिया है साथ किसीका?
चाहे जितना अपना हो!
पग पग पर कंटक भरे हैं
भटके पथ जैसे भूल भुलैया
लगता जैसे भटक गये हों
लक्ष्य तो सचमुच रूठ गया!
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