चंदा मामा दूर के
काव्य साहित्य | कविता राजेश ’ललित’15 Jul 2024 (अंक: 257, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
चंदा अब
मामा नहीं रहे
अब चंदा
के नाम पर
पूए नहीं मिलते
चंदा पर मिलते हैं
गहरे गड्ढे
पृथ्वी से
वैज्ञानिकों के
भेजे कुछ
घूमते रोबोट
तलाशते पानी
ताकि रह सकें हम
भी वहाँ
कुछ लोग
चाहते हैं
वहाँ बसना
पहले ढूँढ़ लें
उचित स्थान
खड़ी कर सकें
ऊँची इमारतें
कमाई हो सके
दफ़्तर खुल गये हैं
रह लिया
सब लिया
बच्चे नहीं
गाते गाना
‘चंदा तुम फिर आना’
या फिर
‘चंदा मामा दूर के
पूए पकायें
चूर के
आप खायें
थाली में
मुन्ने को दें
प्याली में’
डॉक्टर ने
पूये खाने को
मना किया है
मधुमेह का
ख़तरा है
अब बच्चे मोबाइल
के खेल खेलते
चंदा को नहीं देखते
बेचारा चंदा
अब उदास है
हताश है
अतिक्रमण
बेहिसाब है
कोई तो फ़िक्र करे
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य कविता
चिन्तन
कविता
- अंधे की लाठी
- अभिमन्यु फँसा फिर से
- आवारा हो गया यह शहर
- आषाढ़ के दिन
- इतवारी रिश्ते
- कुछ विचार
- कृष्ण पक्ष
- खोया बच्चा
- गुटर गूँ-गुटर गूँ
- चंदा मामा दूर के
- चलो ढूँढ़ें उस चिड़िया को
- चाँद, सूरज और तारे
- जानवर और आदमी
- जी, पिता जी
- झुर्रियाँ
- झूठ की ओढ़नी
- टूटा तटबंध
- ठग ज़िन्दगी
- डूबती नाव
- दीमक लगे रिश्ते
- धान के खेत में; खड़ा बिजूका
- नज़रिया
- पतझड़ और बसंत
- पेड़ और आदमी
- पोरस
- बरखा बारंबार
- बहुत झूठ बोलता है?
- बाँझ शब्द
- बुद्ध नया
- बुधिआ को सुई
- भीष्म की शब्द शैय्या
- भूख (राजेश ’ललित’)
- मकान
- मजमा
- मम्मी, इंडिया और मैं
- मरना होगा
- माँ, हुआ रुआँसा मन
- माँ
- मैं नहीं सिद्धार्थ
- यादें
- ये मत कहना
- राम भजन कर ले रै प्राणी
- विक्रम और बेताल
- शेष दिन
- सपने बुन लो
- सरकार
- सर्दी और दोपहर
- सलीब
- सूखा बसंत
- सूनापन
- सूरज की चाह
- हम भीड़ हैं
- हाथ से फिसला दिन
- हादसे
- ख़्याली पुलाव
बाल साहित्य कविता
सांस्कृतिक आलेख
कविता - क्षणिका
- कफ़न
- कौन उलझे?
- टीस
- टूटे घरौंदे
- डरी क़िस्मत
- दुखों का पहाड़
- देर ही देर
- परेशानियाँ
- पलकों के बाहर
- पेड़
- प्रकृति में प्रेम
- बंद दरवाज़ा
- भटकती मंज़िल
- भीगा मन
- भूकंप
- मुरझाये फूल
- राजेश 'ललित' – 001
- राजेश 'ललित' – 002
- राजेश 'ललित' – 003
- राजेश 'ललित' – 004
- राजेश 'ललित' – 005
- राजेश 'ललित' – 006
- लड़ाई जीवन की
- वक़्त : राजेश ’ललित’
- शरद की आहट
- शून्य
- समय : राजेश 'ललित'
- सीले रिश्ते
- सूखा कुआँ
- सूखी फ़सल से सपने
- हारना
स्मृति लेख
सामाजिक आलेख
कविता - हाइकु
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं