राजेश 'ललित' – 001
काव्य साहित्य | कविता - क्षणिका राजेश ’ललित’1 Jun 2021 (अंक: 182, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
1.
काल ने भेजा संदेश
यमराज ने बदला भेष
मौत तो मौत ही है
कहाँ एक सी आती है
बस बहाने बनाती है
2.
मैं ढूँढ़ता रहा ताउम्र
जीने का सलीक़ा
हर मोड़ पर मिली सिलवटें
नहीं दौड़ी सरपट ज़िंदगी
ऊबड़ खाबड़ रही सड़क
नौसिखिया ही रहा इस उम्र
मिलेगी अगली उम्र
तो देखेंगे।
3.
समेट रहा ख़ुद को
सिमटने की की उम्र है न
याद आऊँगा कुछ दिन
भूल जाना फिर
कोई बात नही
यही होता है सबके साथ
4.
टूटा आईना
हर टुकड़ा
भी रहा आईना
ये जो मेरा अक्स है
न हुआ अक्स
टुकड़ा टुकड़ा
वजूद हुआ
हँस बिखरा बिखरा।
5.
वक़्त के धुएँ से
धुँधला गया
अस्तित्व मेरा
वक़्त ने जो किया
सो किया
भरमा गई है
रूह मेरी
भरभरा कर
रह गया है जिस्म
6.
जब रेत पर लिखा नाम
मेरे नाम के साथ प्रिये
नाम हर रोज़ बदला मैंने
न हो बदनाम तुम इसलिये
7.
डूब जाओगे
किनारों को छोड़
चलो कहीं ऊपर नीचे
कहीं तो पहुँच जाओगे
8.
सरहदें कभी
हमेशा रहे
हदों में सभी
लक्ष्मण रेखायें
अब भी खिंचीं हैं
सहमी सहमी सी
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