विक्रम और बेताल
काव्य साहित्य | कविता राजेश ’ललित’1 Jan 2025 (अंक: 268, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
एक विक्रम था,
एक था बेताल,
बेताल, के थे,
बहुत बड़े-बड़े सवाल,
विक्रम बेचारा,
क्या जवाब देता,
यदि मुँह खोलता,
तो सिर टुकड़े-टुकड़े,
हो जाता,
भैया, सवाल पूछने
पर सिर टुकड़े-टुकड़े
हो जायेगा,
लोग डरे-डरे क्यों रहते हैं?
सिर्फ़ उतना बोला जाए,
जो उनको पसंद है,
विरोध होगा,
तो सिर टुकड़े-टुकड़े
होगा,
हर क्रूरता, अत्याचार,
चुपचाप करो स्वीकार,
नहीं तो, फिर सज़ा
को रहो तैयार,
यदि वो कहें तो ठीक,
वही हम कहें तो ग़लत,
यह लोकतंत्र है,
भैया,
विक्रम के कांधे,
पर सवार,
एक बेताल जो,
सवाल पूछता है,
जवाब दो,
तो, सिर टुकड़े टुकड़े,
कर देता है,
अथ विक्रम बेताल कथा अस्ति,
इति।
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