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देवशयनी-एकादशी

भारतीय संस्कृति में कोई भी वार, तिथि और त्यौहार यूँ ही नहीं बना दिये गये हैं। इनके मनाने के पीछे हमारे ऋषि मुनियों की सतत चिंतन प्रक्रिया है। वार हमारे सप्ताह के दिनों के नाम हैं और तिथियाँ मास के दो भागों में बँटी हैं; कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। दोनों पक्ष में चौदस तक तिथियाँ हैं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है अमावस्या और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि है पूर्णमासी। 

एकादशी अर्थात्‌ दोनों पक्षों की ग्यारहवीं तिथि। लोग वर्ष भर एकादशी का व्रत रखते हैं। इसके पीछे बहुत वैज्ञानिक कारण हैं। पहला यह कि इस दिन चंद्रमा के वलय में घूमते हुए पृथ्वी के सबसे निकटतम होते हैं इसलिये ये अत्याधिक गुरुत्व आकर्षण में केंद्रित होकर हमारे मन पर अत्याधिक प्रभाव डालते हैं। 

एकादशी का व्रत रखने का एक और भी कारण है कि हमारी पाँच कर्म इंद्रियाँ और पाँच ज्ञानेंद्रियाँ हैं और ग्यारहवाँ है मन। मन चंचल होता है। यह स्थिर नहीं होता। जैसा कि मैंने ऊपर कहा है कि एकादशी पर चंद्रमा के निकटतम होने पर यह अधिक तेज़ी से प्रतिक्रिया देने लगता है अत: मन को नियंत्रित करने हेतु एकादशी का व्रत रखा जाता है। 

अब आते हैं देवशयनी एकादशी पर। प्रत्येक एकादशी का मौसम के अनुसार और मास के अनुसार इसका नामकरण भी किया गया है। जैसे देवशयनी को आषाढ़ी एकादशी भी कहते हैं। 

आषाढ़ (एकादशी), सावन, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक (एकादशी) तक कुल चार मास होते हैं जिनसे यह चातुर्मास कहलाता है। इसमें यह परंपरा है कि साधु-संत ऋषि मुनि जहाँ भी होते हैं वहीं अपना मन स्थिर कर लेते हैं। यह चार मास वर्षा और उसके पश्चात् मौसम बदलने के कारण रोगों का वेग होता है ऐसे में आप शरीर स्वस्थ नहीं रख पाते और रोगी होने के ख़तरे पर होते हैं अत: अपने मनोनुकूल वातावरण का चयन ही सर्वोत्तम होता है। 

विष्णु जी का शयन देवशयन कहलाता है यानी आपकी जो प्रतिदिन की दिनचर्या है वह छोड़ कर संतुलित दिनचर्या अपनायें। यह काल शिवजी के हाथों चला जाता है जोकि योगी हैं प्रकृति के निकटतम रहने वाले देव हैं। इसलिये शिवरात्रि और कांवढ़ का जल भर शिव को अर्पित करना शुभ माना गया है। इन्हीं दिनों में रक्षाबंधन और जन्माष्टमी इन्हीं दिनों में मनाई जाती है। अत: इन दिनों गंगाजल या जड़ी बूटी वाला जल का अधिक प्रयोग आपको रोगों से बचा सकता है। हरी साग सब्ज़ियों की जगह ठोस और कम मात्रा में खाना खायें और योग अपना कर जीवन में चिंतन मनन और साधना करें। यह न केवल आपके लिये अपितु समाज के लिये भी लाभदायक होगा। 

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