डर रह गया
काव्य साहित्य | कविता अरुण कुमार प्रसाद1 Aug 2020
आज सुबह
कल जैसे ही मिले
रात में जो बीता
उसे लगे कहने-सुनने।
भूख का दर्द,
इच्छा की पीड़ा।
सुना।
मन भीगा।
शंकाएँ थीं
सुलझ न पाया।
सुलझा लेंगे कल
कह लिए-
मुलाक़ात खत्म।
डर रह गया।
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