डर
कथा साहित्य | लघुकथा महेश कुमार केशरी15 Dec 2024 (अंक: 267, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
पाँच साल की ऋद्धि झाड़ियों की तरफ़ से अहाता पार करते हुए, जा रही थी।
पिता ने टोका, “नहीं बेटा झाड़ियों की तरफ़ से नहीं। सामने से जाओ।”
“पापा आप क्यों डरते हैं? झाड़ियों में जानवर थोड़ी ना रहते हैं।”
“नहीं बेटा फिर, भी तुम्हें लेकर बहुत डर लगता है।”
“पापा, आप भी ना बहुत बुद्धू हैं। मैं बिल्लियों और शेरों से खेलती हूँ। वो मेरे दोस्त हैं।”
“अच्छा।”
“तब, आप किससे डरते हैं?”
“आदमी से।”
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अरूण कुमार प्रसाद 2024/12/22 09:30 AM
सारगर्भित डर।