पिता और पेड़
काव्य साहित्य | कविता महेश कुमार केशरी15 Nov 2023 (अंक: 241, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
सड़क के किनारे
कुछ औरतें
बीन रहीं थीं . . .
पेड़ की सूखी हुई
टहनियाँ . . .
पेड़ को देखकर पिता
याद आये . . .
पेड़ का कोई लड़का नहीं था . . .
उसके लड़के या कह लें बच्चे
ये पूरी दुनिया थी . . .
मैंने ग़ौर से देखा पेड़
को . . .
पेट की टहनियाँ घिसकर
काली हो गईं थीं ।
जैसे मेरे पिता के हाथ
काम करते करते कठोर हो गये थे . . .
पेड़ और पिता में और भी समानतायें थीं . . .
पेड़ भी कमर से झुक गया था . . .
पिता की तरह
अपने अंतिम दिनों में . . .
पिता भी कमर से झुक गये थे . . .
मेरे स्कूल के रास्ते
में पड़ता था वो पेड़ . . .
पिता मुझे स्कूल छोड़ने
जब जाते तो
मैं रोज़ पेड़ को बहुत ग़ौर
से देखता . . .
उस समय पेड़ बहुत हरा था
पिता की तरह . . .
अलमस्त सा . . . अपनी हरियाली से
हरहराता . . .
पिता भी उस समय युवा थे
पेड़ की तरह . . .
हरहराते . . .
पिता के पाँच लड़के थे . . .
पिता भी पेड़ की तरह थे . . .
केवल देना जानते थे . . .
बड़े भैया . . .कभी पिताजी की
क़मीज़ लेकर
पहन लेते . . .
मँझले, भैया कभी
पायजामा माँगकर पहन लेते . . .
तीसरे नंबर के भाई और पिताजी
के पैर का साईज़ एक जैसा था
वो, पिताजी के जूते लेकर
पहनता . . .
पिता सबकी ज़रूरतें पूरी करते
रहे पेड़ की तरह . . .
चारों भाईं जोंक की तरह थे
पिता को अपने ख़र्चे
मुसीबतें सुनाकर उनका ख़ून चूसते रहते . . .
आजीवण . . .
पिता उदार रहे
पेड़ की तरह . . .
पेड़ भी मुझे पिता
की तरह लगता है . . .
आदमी अक़्सर काटते दिखता है . . .
पेड़ को . . .
जो हवा और फल,
फूल उपलब्ध करवाते हैं . . .!
लेकिन . . .पिता के अंतिम समय
में जब वे बहुत बीमार थे
उनके आसपास माँ के सिवा
और कोई नहीं था!
उस समय पिता को मैंने सिसकते
हुए देखा था . . .
बहुत धीमे-धीमे!
कि कोई आवाज़ ना सुन ले
उनकी . . .
पेड़ भी बहुत सिसकता है . . .
बहुत धीमे-धीमे जब
उसको लोग काटते हैं!
मैं सोचता हूँ . . .
पिता और एक पेड़ एक जैसे होते हैं . . .
केवल देना जानते हैं . . .
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