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कथा साहित्य | लघुकथा महेश कुमार केशरी15 Jun 2022 (अंक: 207, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
नेताजी की आवाज़ एक बार फिर से माइक से होकर गूँजी, “हम अपनी, बेटियों को बारहवीं तक की मुफ़्त शिक्षा, टेब्लेटस, साइकिल, और मुफ़्त स्कूटी देंगे। पाँच सौ यूनिट तक की फ़्री बिजली देंगे। युवाओं को रोज़गार देंगे। ग़रीबों को इंदिरा आवास देंगे। वृद्धों को पेंशन देंगे।”
तभी एक लड़की की आवाज़ नेताजी के तरफ़ उछली, “नेताजी, आप हमें कुछ मत देना। बस हमें इतना भरोसा देना की कोई हम बेटियों का बलात्कार ना कर सके।”
नेताजी की ज़ुबान जैसे तालू से चिपक गई। ज़ुबान लड़खड़ाने लगी। लगा नेताजी की घिग्घी बँध गई हो। और माइक ख़ामोश हो गया।
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