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ताले में बंद दुनिया

 

मैं इसी दुनिया में एक 
घर बनाना चाहता हूँ 
जिसके अन्दर 
हमेशा, ज़िन्दा रहें 
संवेदनाएँ . . .
जिसमें रहते हों 
वैसे लोग, 
जो मिलते-जुलते रहते हों 
आपस में और 
हमेशा पूछते रहते हों एक-दूसरे का 
हाल
जो किसी के रोने पर ठिठक जाते हों
जो आते हों अपना सब काम-धाम छोड़कर 
किसी के मर जाने पर 
और अर्थी के साथ-साथ चलते हों
या . . . वो समय निकाल लेते हों 
जब किसी के बेटी का ब्याह 
हो रहा हो
या गाँव में कहीं बन रही हो कोई 
सड़क जिसमें अपना श्रमदान कर आयें . . .
अब चीज़ें सचमुच बरदाश्त से बाहर 
हो रहीं हैं 
इस दुनिया के उस घर में लगाना 
चाहता हूँ 
एक ताला
और हमेशा के लिए बंद 
करके रखना चाहता हूँ, ऐसे लोगों को 
उस घर में 
ताकि लोग 
अपनी दिन-दुनिया में इतने व्यस्त 
ना हो जायें . . .
कि इस दुनिया
के लोगों की तरह 
एक-दूसरे की सुध लेने 
का थोड़ा सा भी 
वक़्त ना बचा हो उन लोगों के पास! 

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