कील-2
काव्य साहित्य | कविता महेश कुमार केशरी15 Jun 2022 (अंक: 207, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
कीलों ने हमेशा चाहा
की वे
हमेशा पुल बनें
और हमेशा जोड़ती जायें
आने-जाने का रास्ता . . .
उन्होंने सीढ़ी बनना गवारा
किया ताकि लोग आगे
बढ़ सकें और छू
सकें आसमान . . .
कील बनाने वाली सोच
ने कभी ये नहीं सोचा कि
उससे बनाई जाये
कोई बंदूक . . .
या कि लैंडमाइंस
जिससे लोग लहूलुहान हो जायें
और, मर जायें
ज़ब्ह किये हुए बकरे की तरह
फड़फड़ाकर . . .
उन्होंने साबुत ठुकना
मंज़ूर किया
ताकि और लोगों का वुजूद बचा
रहे . . .
फिर, किसने सोचा बंदूक
बनाने के लिए
या फिर, लैंडमाइंस में किसने
किया
कीलों का इस्तेमाल . . .?
कीलों ने आदमी
के लिए कभी ऐसा
नहीं सोचा . . .
फिर, कौन हैं
वो, हाथ जो बनाते हैं
बँदूक, और बिछातें
हैं, लैंडमाइंस . . .?
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