सिर माथे
कथा साहित्य | कहानी दीपक शर्मा1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
”कोई है?” रोज़ की तरह घर में दाख़िल होते ही मैं टोह लेता हूँ।
”हुज़ूर!” पहला फ़ॉलोअर मेरे सोफ़े की तीनों गद्दियों को मेरे बैठने वाले कोने में सहलाता है।
”हुज़ूर!” दूसरा दोपहर की अख़बारों को उस सोफ़े की बग़ल वाली तिपाई पर ला टिकाता है।
”हुज़ूर!” तीसरा मेरे सोफ़े पर बैठते ही मेरे जूतों के फीते आ खोलता है।
”हुज़ूर!” चौथा अपने हाथ में पकड़ी ट्रे का पानी का गिलास मेरी तरफ़ बढ़ाता है।
”मेम साहब कहाँ हैं?” शाम की क़वायद की एक अहम कड़ी ग़ायब है। मेरे दफ़्तर से लौटते ही मेरी सरकारी रिवॉल्वर को मेरी आलमारी के सेफ़ में सँभालने का ज़िम्मा मेरी पत्नी का रहता है। और उसे सँभाल लेने के एकदम बाद मेरी चाय बनाने का। मैं एक ख़ास पत्ती की चाय पीता हूँ। वेल ब्रू . . . ड। शक्कर और दूध के बिना।
”उन्हें आज बुख़ार है,” चारों फ़ॉलोअर एक साथ बोल पड़ते हैं।
”उन्हें इधर बुलाओ . . . देखें!”
पत्नी का दवा-दरमन मेरे हाथ में रहता है। मुझसे पूछे बिना कोई भी दवा लेने की उसे सख़्त मनाही है।
सिलवटी, बेतरतीब सलवार-सूट में पत्नी तत्काल लॉबी में चली आती है। थर्मामीटर के साथ।
”दोपहर में 102 डिग्री था, लेकिन अभी कुछ देर पहले देखा तो 104 डिग्री छू रहा था . . .”
”देखें,” पत्नी के हाथ से थर्मामीटर पकड़कर मैं पटकता हूँ, “तुम इसे फिर से लगाओ . . .”
पत्नी थर्मामीटर अपने मुँह में रख लेती है।
”बुख़ार ने भी आने का बहुत ग़लत दिन चुना। बुख़ार नहीं जानता आज यहाँ तीन-तीन आई.जी. सपत्नीक डिनर पर आ रहे हैं?” मैं झुँझलाता हूँ। मेरे विभाग के आई.जी. की पत्नी अपनी तीन लड़कियों की पढ़ाई का हवाला देकर उधर देहली में अपने निजी फ़्लैट में रहती हैं और जब भी इधर आती हैं, मैं उन दोनों को एक बार ज़रूर अपने घर पर बुलाता हूँ। उनके दो बैचमेट्स के साथ। जो किसी भी तबादले के अंतर्गत मेरे अगले बॉस बन सकते हैं। आई.पी.एस. के तहत आजकल मैं डी.आई.जी. के पद पर तैनात हूँ।
”देखें,” पत्नी से पहले थर्मामीटर की रीडिंग मैं देखना चाहता हूँ।
”लीजिए . . .”
थर्मामीटर का पारा 105 तक पहुँच आया है।
”तुम अपने कमरे में चलो,” मैं पत्नी से कहता हूँ, “अभी तुम्हें डॉ. प्रसाद से पूछकर दवा देता हूँ . . .”
डॉ. प्रसाद यहाँ के मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन के लेक्चरर हैं और हमारी तंदुरुस्ती के रखवाल दूत।
दवा के डिब्बे से मैं उनके कथनानुसार पत्नी को पहले स्टेमेटिल देता हूँ, फिर क्रोसिन, पत्नी को आने वाली कै रोकने के लिए। हर दवा निगलते ही उसे कै के ज़रिए पत्नी को बाहर उगलने की जल्दी रहा करती है।
”मैं आज उधर ड्राइंगरूम में नहीं जाऊँगी। उधर ए.सी. चलेगा और मेरा बुख़ार बेक़ाबू हो जाएगा,” पत्नी बिस्तर पर लेटते ही अपनी राजस्थानी रजाई ओढ़ लेती है, ”मुझे बहुत ठंड लग रही है . . .”
”ये गोलियाँ बहुत जल्दी तुम्हारा बुख़ार नीचे ले आएँगी,” मैं कहता हूँ, ”उन लोगों के आने में अभी पूरे तीन घंटे बाक़ी हैं . . .”
मेरा अनुमान सही निकला है। साढ़े आठ और नौ के बीच जब तक हमारे मेहमान पधारते हैं, पत्नी अपनी तेपची कशीदाकारी वाली धानी वायल के साथ पन्ने का सेट पहन चुकी है। अपने चेहरे पर भी पूरे मेकअप का चौखटा चढ़ा चुकी है। अपने परफ़्यूम समेत। उसके परिधान से मेल खिलाने के उद्देश्य से अपने लिए मैंने हलकी भूरी ब्रैंडिड पतलून के साथ दो जेब वाली अपनी धानी क़मीज़ चुनी है। ताज़ा हजामत और अपने सर्वोत्तम आफ़्टर शेव के साथ मैं भी मेहमानों के सामने पेश होने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुका हूँ।
पधारने वालों में अग्निहोत्री दंपती ने पहल की है।
”स्पलैंडिड एवं फ़्रैश एज़ एवर सर, मैम,” (हमेशा की तरह भव्य और नूतन) मैं उनका स्वागत करता हूँ और एक फ़ॉलोअर को अपनी पत्नी की दिशा में दौड़ा देता हूँ, ड्राइंगरूम लिवाने हेतु। इन दिनों अग्निहोत्री मेरे विभाग में मेरा बॉस है।
दोनों ही ख़ूब सजे हैं। अपने साथ अपनी-अपनी क़ीमती सुगंधशाला लिए। अग्निहोत्री ने गहरी नीली धारियों वाली गहरी सलेटी क़मीज़ के साथ गहरी नीली पतलून पहन रखी है और उसकी पत्नी ज़रदोज़ी वाली अपनी गाजरी शिफ़ान के साथ अपने क़ीमती हीरों के भंडार का प्रदर्शन करती मालूम देती है। उसके कर्णफूल और गले की माला से लेकर उसके हाथ की अँगूठी, चूड़ियाँ और घड़ी तक हीरे लिए हैं।
वशिष्ठ दंपती कुछ देर बाद मिश्र दंपती की संगति में प्रवेश लेता है।
वशिष्ठ और उसकी पत्नी को हम लोग सरकारी पार्टियों में एक-दूसरे से कई बार मिल चुके हैं, किन्तु हमारे घर आने का उनका यह पहला अवसर है। शायद इसीलिए वशिष्ठ के हाथ में रजनीगंधा का एक गुच्छा भी है।
”यह श्रीमती शांडिल्य के लिए है,” वह फूल मेरी पत्नी के हाथों में थमाता है।
”थैंक यू,” पत्नी की आवाज़ लरज ली है। वशिष्ठ अपनी लाल टमाटरी टी-शर्ट और नीली जींस में चुस्त और ’कैजुअल’ दिखाई दे रहा है। दो घंटे की गौल्फ़ उसके नित्य कर्म का एक अनिवार्य अंश है और शायद उसके फ़ुर्तीलेपन का रहस्य भी। हालाँकि सुनने में आया करता है, रात को गौल्फ़ क्लब में अग्निहोत्री के साथ वह भी मद्यपान में लगभग रोज़ ही सम्मिलित रहता है। उसकी पत्नी की भड़कीली मोरपंखी जार्जेट साड़ी ऐसी मुद्रित बैंगनी रेखाएँ लिए है जो हर ओर से तिरक्षा प्रभाव देने के कारण आँखों में चुभ रही हैं। उसके गले, कानों और हाथों में लटक रहे उसके फिरोज़ी टूम-छल्लों की तरह जो आभूषण कम और खिलौने ज़्यादा लग रहे हैं। नुमाइशी उसका यह दिखाव-बनाव श्रीमती मिश्र की फिरोज़ी रंग की आरगैंडी और मोतियों की सौम्यता को और उभार लाया है। मिश्र ने पूरी बाँहों की एक हलकी गुलाबी क़मीज़ के साथ क्रीम रंग की पतलून पहन रखी है।
प्रारंभिक वाहवाही के ख़त्म होते ही नौ बजे ड्रिंक्स और स्टार्टरज़ परोसे जा रहे हैं। सभी पुरुष जन ब्लू लेबल लेने वाले हैं और मेरी पत्नी को छोड़कर सभी स्त्रीगण व्हाइट वाइन।
चिकन टिक्के और फ़िश फ़िंगर्ज़ को देखते ही वशिष्ठ चिल्ला उठता है: ”मेरे मेज़बान ने मुझसे पूछा नहीं, मैं शाकाहारी हूँ या नहीं . . .”
”मुझे क्षमा कीजिए सर,” मैं तत्काल उसकी बग़ल में चीज़लिंग्ज़ की तश्तरी उसकी गिलास वाली तिपाई पर जा टिकाता हूँ, ”मैम के लिए मैं अभी नया कटोरा मँगवाता हूँ . . .”
”लेकिन मुझे मांस-मछली बहुत पसंद है . . .” श्रीमती वशिष्ठ ही-ही करती है, ”फ़िश और चिकन तो ज़रूर ही लूँगी . . .”
”मुझे तो यह क्लाथ नेपकिन बहुत पसंद है,” श्रीमती अग्निहोत्री मेरी ओर देखती है। ”जब भी इधर आती हूँ चित्त प्रसन्न हो उठता है। पेपर नेपकिन का चलन मुझे बेहूदा लगता है . . .”
वशिष्ठ अपनी पत्नी को घूर रहा है।
”यस मैम! आपको यह हरी चटनी भी तो बहुत पसंद है . . .”
उसकी प्लेट में मैं चटनी परोसता हूँ।
”धनिए ही की क्यों?” श्रीमती अग्निहोत्री अपने हाथ दूसरी चटनी की ओर बढ़ाती है, ”मुझे तो आपके घर की यह इमली वाली मीठी चटनी भी बहुत पसंद है।”
”अरे यार! चिकन और फ़िश भी अब ले लो . . .” मिश्र लार टपकाता है, ”वरना मुझे एक चुटकुला सुनाना पड़ेगा।”
”सुनाइए सर प्लीज़, सुनाइए!”
मैं मिश्र की बग़ल में जा खड़ा होता हूँ।
”एक जन ने एक होटल के अपने कमरे में नाश्ते का ऑर्डर देना चाहा तो वेटर ने पूछा, सर आप मक्खन लेंगे या जैम? तो उन्होंने जवाब दिया, डबल रोटी भी साथ में लूँगा,” सभी ठठाकर हँस पड़ते हैं। मेरी पत्नी के अलावा। वह काँप रही है।
”डबल रोटी से मुझे भी एक चुटकुला याद आ रहा है,” अग्निहोत्री बोलता है, ”एक कार्नीवल में एक गुक्क अपना तमाशा दिखा रहा था . . .”
”गुक्क?” श्रीमती अग्निहोत्री पति की ओर आँखें तरेरती है, ”पहले गुक्क का मतलब भी बताओ . . .”
”सभी जानते हैं गुक्क कौन होता है,” अग्निहोत्री श्रीमती वशिष्ठ की दिशा में अपना सिर घुमाता है।
वह शून्य में ताक रही है।
”मैं नहीं जानता सर . . .” मैं अपनी दृष्टि अनभिज्ञता से भर लेता हूँ। जानबूझकर। उसे प्रसन्न करने हेतु। अपनी मेज़बानी के अंतर्गत।
”लोगों के मनोरंजन के लिए हर कार्नीवल में साइड शो रखते जाते हैं,” अग्निहोत्री ठठाता है, ”उस साइड शो को चलाने वाले को गुक्क कहा जाता है . . .” अग्निहोत्री ठठाता है, ”उस साइड शो को चलाने वाले को गुक्क कहा जाता है . . .”
”अब चुटकुला सुनाइए,” श्रीमती मिश्र अपनी प्लेट भर रही है।
”हुआ यों कि वह गुक्क लोगों को चौंकाने की ख़ातिर ज़िन्दा मुर्गे अपने हाथ में दबोचता और अपने दाँत उनकी गरदन में गड़ा देता। देखने वालों में से एक से चुप न रहा गया, अबे, रुक यार। बग़ल से तेरे लिए डबलरोटी भी लाता हूँ। मुर्गा ज़्यादा स्वाद लगेगा।”
”ख़ूब, बहुत ख़ूब,” सभी हँस पड़ते हैं। मैं पत्नी की ओर देखता हूँ। वह शायद बेहोश होने जा रही है। तेज़ बुख़ार में वह अक़्सर बेहोश हो जाया करती है।
”पनीर टिक्का बनवा दो,” बहाने से मैं उसे कमरे से बाहर भेजने का हीला ढूँढ़ रहा हूँ।
वह उठ खड़ी होती है, लेकिन दरवाज़े पर पहुँचते ही वह धड़ाम से नीचे गिर जाती है।
”क्या हुआ?” सभी लगभग चीख उठते हैं। चारों फ़ॉलोअर अंदर लपक आते हैं।
”आप घबराइए नहीं,” मैं कहता हूँ, ”इन्हें आज थोड़ा बुख़ार है। मैं देखता हूँ। अपने डॉ. प्रसाद से पूछता हूँ।”
”रिलैक्स, माइ लैड, रिलैक्स . . .” अग्निहोत्री कहता है, ”हमें खाने की कोई जल्दी नहीं। हम लोगों की चिंता छोड़ो और इन्हें सँभालो।”
पत्नी को कमरे में पहुँचाकर मैं फोन थाम लेता हूँ। डॉ. प्रसाद मुझे पत्नी को मेडिकल कॉलेज ले जाने की सलाह देते हैं। वे वहीं इमरजेंसी में एक मंत्री के सम्बन्ध के रक्तचाप को ठीक करने में जुटे हैं। उनके अनुसार, तेज़ बुख़ार कभी-कभी निमोनिया का विकट रूप भी ले लिया करता है। और उसका हल वहीं इमरजेंसी के आई.सी.यू. में दाख़िल कराने से सहज ही मिल जाएगा। बुख़ार और कँपकँपी की निरंतर निगरानी के निमित्त।
”ओह नो!” अपने मेहमानों को जैसे ही मैं यह सूचना देता हूँ, तीनों स्त्रियाँ लगभग चीख पड़ती हैं।
”रिलैक्स, एवरबॉडी रिलैक्स . . .” पुरुषों की ओर से अपनी प्रतिक्रिया देने में अग्निहोत्री पहल करता है, ”खाने की हमें कोई जल्दी नहीं। शांडिल्य को अस्पताल ज़रूर जाना चाहिए। और इन स्त्रियों के याद रखना चाहिए, वे तीनों पुरानी, अनुभवी गृहिणियाँ हैं। श्रीमती शांडिल्य की ज़िम्मेदारी बख़ूबी बाँट सकती हैं, निभा सकती हैं।”
”हाँ, क्यों नहीं?” मिश्र अपनी पत्नी की ओर देखता है, ”तुम रसोई में बिलकुल जा सकती हो? जाओगी ही?”
”बिलकुल,” श्रीमती मिश्र का सामान्य धीमा स्वर लौट आता है।
”और खाना तो लगभग बन ही चुका होगा,” वशिष्ठ अपनी पत्नी को घूरता है, ”क्यों, शांडिल्य?”
”जी सर, बिलकुल सर,” मैं असहज हो उठता हूँ, ”लेकिन सर, अगर वहाँ कोई इमरजेंसी की स्थिति आ गई तो मैं शायद रात-भर न लौट पाऊँ . . .”
”तुम वहीं रुक सकते हो,” श्रीमती अग्निहोत्री कहती है, “हम लोग की चिंता किए बग़ैर। हम सब सँभाल लेंगी। मेज़ पर खाना लगवा देंगी। सबको भरपेट खिला देंगी।”
”रिलैक्स, माइ लैड, रिलैक्स,” अग्निहोत्री कहता है, ”हम एक-दूसरे की संगति का भरपूर आनंद लेंगे . . .”
”थैक यू, सर, थैंक यू सर,” मेरी असहजता बढ़ रही है किन्तु मैं उचरता हूँ।
अग्निहोत्री दरवाज़े पर खड़े मेरे एक फ़ॉलोअर को संकेत से अंदर बुला लेता है। ”जाओ। अपने साहब की गाड़ी पोर्च में लगवाओ। वे अभी निकल रहे हैं . . .”
”हमारा ड्राइवर तो, हुज़ूर, बाज़ार के लिए निकल चुका है,” फ़ॉलोअर हाथ जोड़कर खड़ा रहता है।
”कोई चिंता नहीं,” अग्निहोत्री उदार हो उठता है, ”तुम मेरी गाड़ी लगवा दो। जल्दी . . .”
”मगर हमारे ड्राइवर को बाज़ार के लिए निकले हुए एक घंटे से ऊपर हो रहा है,” मैं झल्लाता हूँ . . . ”वह अभी तक नहीं लौटा?”
”हुज़ूर जानते हैं,” फ़ॉलोअर अपनी कुटिल मुस्कान छोड़ता है, “शाम के समय ट्रैफ़िक कुछ ज़्यादा ही बढ़ जाता है। फिर उसे पान के साथ-साथ आइसक्रीम भी लानी है, हुज़ूर . . .”
”तुम जाओ मेरी गाड़ी लगवाओ,” अग्निहोत्री अपना गिलास अपनी तिपाई पर रखकर मेरी ओर बढ़ आता है, “देखो, शांडिल्य। तुम अब और समय न गँवाओ। कँपकँपी और बेहोशी के मामले में ज़्यादा देरी अच्छी नहीं। खाने के बाद हम तुम्हारी गाड़ी से मेडिकल कॉलेज आ जाएँगे और वहाँ से अपनी गाड़ी में बैठ लेंगे। इस बीच तुम मेरी गाड़ी अपने साथ बराबर बनाए रखना। इमरजेंसी में किसी भी दवा की कभी भी ज़रूरत पड़ सकती है . . .”
”थैंक यू, सर। मगर . . .”
”रिलैक्स शांडिल्य। रिलैक्स। हमारी चिंता छोड़ दो,” अग्निहोत्री मेंरा कंधा थपथपाता है और मुझे अपने साथ चलने का संकेत देता है।
”यक़ीन मानो,” उसकी पत्नी मुझे अपनी प्रशस्त मुस्कान देती है। “हम लेडीज़ सब देख लेंगी। इस समय तुम्हारी पत्नी प्रौरिटी (प्राथमिकता) होनी चाहिए हमारी मेहमानदारी नहीं . . .”
”यस, मैम! थैंक यू मैम!”
रात के लगभग साढे़ ग्यारह बजे अग्निहोत्री अपनी पत्नी के साथ मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में आन प्रकट होता है। मेरी सरकारी गाड़ी में।
सूचना मिलते ही मैं उनकी ओर लपक लेता हूँ।
जिज्ञासावश डॉ. प्रसाद भी मेरे साथ हो लेते हैं। अग्निहोत्री के वशीभूत।
”तुम्हारी पत्नी अब कैसी है?”
”डॉ. साहब को निमोनिया का शक है,” मेडिकल कॉलेज आकर मेरी चिंता चौगुनी हो ली है। मगर सबका फिर भी मुझे ध्यान है। “ये डॉ. प्रसाद हैं सर,” मैं डॉक्टर की मंशा पूरी कर देता हूँ, मैं जानता हूँ अपने परिचय का आवाह-क्षेत्र समृद्ध करने की उसे बहुत चाह रहा करती है, ”बहुत योग्य। बहुत भले।”
”ईश्वर की कृपा है सर!” डॉ. प्रसाद अपना हाथ अग्निहोत्री की दिशा में बढ़ा देते हैं।
उन्हें प्रोटोकाल का पूरा ज्ञान नहीं। नहीं जानते, हाथ मिलाने में पहल मिलने वालों के बीच की वरिष्ठता तय किया करती है। और इस समय वरिष्ठता अग्निहोत्री के पक्ष में है।
उसी प्राधिकार का लाभ उठाते हुए अग्निहोत्री डॉ. प्रसाद का बढ़ा हुआ हाथ नज़रअंदाज़ कर देता है और मेरा कंधा थपथपाने लगता है, ”तुमने मेरी सलाह मानकर अच्छा किया, शांडिल्य। पत्नी को समय पर अस्पताल लिवा लाए . . .”
”इस समय वह क्या कर रही है?” डॉ. प्रसाद का उतर रहा मुँह श्रीमती अग्निहोत्री की निगाह से बच नहीं सका है और वह उस पर अपने उपकारी संरक्षण की कृपा बरसाने की चेष्टा करती है। उसे बातचीत में खींचना चाहती है, ”क्या हम उसे बता सकते हैं कि उसके घर पर हम सभी ने भरपेट खाया और ख़ूब आनंद लिया।”
तिलमिला रहे डॉ. प्रसाद उसके संरक्षण की अस्वीकार कर देते हैं और रूखे स्वर में उत्तर देते हैं, ”इस समय श्रीमती शांडिल्य मूर्च्छा में हैं, मैम। अंदर आई.सी.यू. में। और उन्हें होश में लाने की कोशिश पिछले दो घंटों से जारी है . . .”
”कोई बात नहीं . . .” वह सिर हिलाती हैं और मेरी ओर मुड़ लेती हैं, ”उसकी मूर्च्छा टूटने पर, शांडिल्य, तुम उसे यह ज़रूर बता देना ताकि वह अपनी बीमारी को लेकर कोई अपराध भाव न महसूस करे . . .”
”येस मैम!” मैं भी अपना सिर हिला लेता हूँ, ”थैंक यू, मैम . . .”
”अपना ड्राइवर मैं लिए जा रहा हूँ, शाडिल्य,” समापक मुद्रा में अग्निहोत्री मेरी ओर अपना हाथ बढ़ाता है, ”ऑल द बैस्ट, माए लैड . . .”
”थैंक यू सर, थैंक यू . . .”
”हमें गाड़ी तक छोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं, शांडिल्य। हम चले जाएँगे। तुम अपनी पत्नी को देखो। गुड नाइट!”
”थैंक यू सर, यस सर। थैंक यू मैम। गुड नाइट, मैम . . . गुड नाइट, सर . . .”
”गुड नाइट,” श्रीमती अग्निहोत्री कहती हैं और डॉ. प्रसाद की ओर देखे बिना दोनों विपरीत दिशा में बढ़ लेते हैं।
”आपके घर से आ रहे थे?” आई.सी.यू. की तरफ़ बढ़ रहे मेरे क़दमों के संग अपने क़दम मिलाते हुए डॉ. प्रसाद पूछते हैं। झेंपे-झेंपे।
”हाँ। मैंने आज इन्हें डिनर पर बुला रखा था। इनके, दो बैच मेट्स और उनकी पत्नियों के साथ . . .”
”आपके बॉस हैं?”
”हाँ, क्यों?”
”बॉस नहीं होते तो आपके साथ इधर मेडिकल कॉलेज आ गए होते, उधर आपके घर दावत नहीं उड़ाते . . .”
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
- अच्छे हाथों में
- अटूट घेरों में
- अदृष्ट
- अरक्षित
- आँख की पुतली
- आँख-मिचौनी
- आँधी-पानी में
- आडंबर
- आधी रोटी
- आब-दाना
- आख़िरी मील
- ऊँची बोली
- ऊँट की करवट
- ऊँट की पीठ
- एक तवे की रोटी
- कबीर मुक्त द्वार सँकरा . . .
- कलेजे का टुकड़ा
- कलोल
- कान की ठेंठी
- कार्टून
- काष्ठ प्रकृति
- किशोरीलाल की खाँसी
- कुंजी
- कुनबेवाला
- कुन्ती बेचारी नहीं
- कृपाकांक्षी
- कृपाकांक्षी—नई निगाह
- क्वार्टर नम्बर तेईस
- खटका
- ख़ुराक
- खुली हवा में
- खेमा
- गिर्दागिर्द
- गीदड़-गश्त
- गेम-चेन्जर
- घातिनी
- घुमड़ी
- घोड़ा एक पैर
- चचेरी
- चम्पा का मोबाइल
- चिकोटी
- चिराग़-गुल
- चिलक
- चीते की सवारी
- छठी
- छल-बल
- जमा-मनफ़ी
- जीवट
- जुगाली
- ज्वार
- झँकवैया
- टाऊनहाल
- ठौर-बेठौ
- डाकखाने में
- डॉग शो
- ढलवाँ लोहा
- ताई की बुनाई
- तीन-तेरह
- त्रिविध ताप
- तक़दीर की खोटी
- दमबाज़
- दर्ज़ी की सूई
- दशरथ
- दुलारा
- दूर-घर
- दूसरा पता
- दो मुँह हँसी
- नष्टचित्त
- नाट्य नौका
- निगूढ़ी
- निगोड़ी
- नून-तेल
- नौ तेरह बाईस
- पंखा
- परजीवी
- पारगमन
- पिछली घास
- पितृशोक
- पुराना पता
- पुरानी तोप
- पुरानी फाँक
- पुराने पन्ने
- पेंच
- पैदल सेना
- प्रबोध
- प्राणांत
- प्रेत-छाया
- फेर बदल
- बंद घोड़ागाड़ी
- बंधक
- बत्तखें
- बसेरा
- बाँकी
- बाजा-बजन्तर
- बापवाली!
- बाबूजी की ज़मीन
- बाल हठ
- बालिश्तिया
- बिगुल
- बिछोह
- बिटर पिल
- बुरा उदाहरण
- भद्र-लोक
- भनक
- भाईबन्द
- भुलावा
- भूख की ताब
- भूत-बाधा
- मंगत पहलवान
- मंत्रणा
- मंथरा
- माँ का उन्माद
- माँ का दमा
- माँ की सिलाई मशीन
- मार्ग-श्रान्त
- मिरगी
- मुमूर्षु
- मुलायम चारा
- मेंढकी
- रंग मंडप
- रण-नाद
- रम्भा
- रवानगी
- लमछड़ी
- विजित पोत
- वृक्षराज
- शेष-निःशेष
- सख़्तजान
- सर्प-पेटी
- सवारी
- सिद्धपुरुष
- सिर माथे
- सिस्टर्ज़ मैचिन्ग सेन्टर
- सीटी
- सुनहरा बटुआ
- सौ हाथ का कलेजा
- सौग़ात
- स्पर्श रेखाएँ
- हम्मिंग बर्ड्ज़
- हिचर-मिचर
- होड़
- हक़दारी
- क़ब्ज़े पर
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं