काश तुम मिलती तो बताता
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मनीष कुमार मिश्रा6 Jun 2020
यूँ ही तुम्हे सोचते हुए
सोचता हूँ कि चंद लकीरों से तेरा चेहरा बना दूँ
फिर उस चेहरे में,
ख़ूबसूरती के सारे रंग भर दूँ ।
तुझे इस तरह बनाते और सँवारते हुए,
शायद ख़ुद को बिखरने से रोक पाऊँगा
पर जब भी कोशिश की,
हर बार नाकाम रहा।
कोई भी रंग,
कोई भी तस्वीर,
तेरे मुकाबले में टिक ही नहीं पाते।
तुझसा,हू-ब-हू तुझ सा,
तो बस तू है या फिर
तेरा अक्स है जो मेरी आँखों में बसा है।
वो अक्स जिसमें
प्यार के रंग हैं
रिश्तों की रंगोली है
कुछ जागते -बुझते सपने हैं
दबी हुई सी कुछ बेचैनी है
और इन सब के साथ,
थोड़ी हवस भी है।
इन आँखों में ही
तू है
तेरा ख़्वाब है
तेरी उम्मीद है
तेरा जिस्म है
और हैं वो ख़्वाहिशें,
जो तेरे बाद
तेरी अमानत के तौर पे
मेरे पास ही रह गयी हैं।
मैं जानता हूँ की मेरी ख़्वाहिशें,
अब किसी और की ज़िन्दगी है.
इस कारण अब इन ख़्वाहिशों के दायरे से
मेरा बाहर रहना ही बेहतर है।
लेकिन, कभी-कभी
मैं यूँ भी सोच लेता हूँ कि -
काश
-कोई मुलाक़ात
-कोई बात
-कोई जज़्बात
-कोई एक रात
-या कि कोई दिन ही
बीत जाए तेरे पहलू में फिर
वैसे ही जैसे कभी बीते थे
तेरी ज़ुल्फों क़ी छाँव के नीचे
तेरे सुर्ख लबों के साथ
तेरे जिस्म के ताजमहल के साथ।
इंसान तो हूँ पर क्या करूँ
दरिंदगी का भी थोड़ा सा ख़्वाब रखता हूँ
कुछ हसीन गुनाह ऐसे हैं,
जिनका अपने सर पे इल्ज़ाम रखता हूँ।
और यह सब इस लिए क्योंकि,
हर आती-जाती सांस के बीच
मैं आज भी
तेरी उम्मीद रखता हूँ।
इन सब के बावजूद,
मैं यह जानता हूँ कि-
मोहब्बत निभाने क़ी सारी रस्में, सारी कसमें
बग़ावत के सारे हथियार छीन लेती हैं।
और छोड़ देती हैं हम जैसों को
अश्वत्थामा की तरह
ज़िन्दगी भर
मरते हुवे जीने के लिए
प्यार क़ी कीमत,
चुकाने के लिए
ताश के बावन पत्तों में,
जोकर क़ी तरह मुस्कुराने के लिए
काश, तुम मिलती तो बताता,
कि मैं किस तरह खो चुका हूँ ख़ुद को,
तुम्हारे ही अंदर।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आज अचानक हुई बारिश में
 - आजकल इन पहाड़ों के रास्ते
 - आठ मार्च, विश्व महिला दिवस मनाते हुए
 - इन पहाड़ों मेँ आकर
 - इन रास्तों का अकेलापन
 - इस महामारी में
 - उतरे हुए रंग की तरह उदास
 - उस ख़्वाब के जैसा
 - उसने कहा
 - एक वैसी ही लड़की
 - काश तुम मिलती तो बताता
 - चाँदनी पीते हुए
 - चाय का कप
 - जब कोई किसी को याद करता है
 - जीवन के तीस बसंत के बाद
 - जो भूलती ही नहीं
 - ताशकंद
 - ताशकंद उज़्बेकिस्तान से जुड़ी 4 कविताएँ
 - ताशकंद शहर
 - तुमसे बात करना
 - दीपावली – हर देहरी, हर द्वार
 - नए साल से कह दो कि
 - निषेध के व्याकरण
 - नेल पालिश
 - बनारस 01 - बनारस के घाट
 - बनारस 02 - बनारस साधारण तरीके का असाधारण शहर
 - बनारस 03 - यह जो बनारस है
 - बनारस 04 - काशी में शिव संग
 - ब्रूउट्स यू टू
 - महाकुंभ
 - मैंने कुछ गालियाँ सीखी हैं
 - मोबाईल
 - युद्ध में
 - वह सारा उजाला
 - वो मौसम
 - शायद किसी दिन
 - शास्त्री कोचासी, ताशकंद
 - शिकायत सब से है लेकिन
 - हम अगर कोई भाषा हो पाते
 - हर घर तिरंगा
 - हिंदी दिवस मनाने का भाव
 
साहित्यिक आलेख
अनूदित कहानी
सजल
नज़्म
कार्यक्रम रिपोर्ट
ग़ज़ल
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक चर्चा
सांस्कृतिक आलेख
सिनेमा और साहित्य
कहानी
शोध निबन्ध
सामाजिक आलेख
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं