रिश्ते (हाइकु निर्मल सिद्धू)
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु निर्मल सिद्धू1 Oct 2019
वक़्त बदला
आसान नहीं रहा
रिश्ते निभाना
रिश्ते न टिकें
पड़ें जब दरारें
शक वो चीज़
ढूँढ़ना व्यर्थ
रिश्तों की गर्माहटें
सर्द आहों में
संदेह पर
बुनियाद रिश्तों की
नहीं टिकती
तमाम रिश्ते
बात करें जो सब
जुड़े रहते
हो प्रफुल्लित
कहीं जो जुड़ जाये
मन से रिश्ता
जहाँ भी देखा
एक जैसा ही देखा
रिश्ता, माँ तेरा
लील जाता है
अच्छे-भले सम्बन्ध
वक़्त निर्मोही
रिश्तों में सदा
ताज़गी बनी रहे
कुछ वो करो
टूटे न कभी
सम्बन्धों की ये डोर
मन जो मिलें
ज़्यादा ना चलें
मतलब के रिश्ते
चौकन्ने रहो
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