अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

शिक्षक

हाँ मैं एक शिक्षक हूँ।
शिक्षक होने का दंभ मैं भरता हूँ।
राष्ट्र निर्माता होने पे गर्व मैं करता हूँ।
हाँ मैं एक शिक्षक हूँ।
 
यह सच है कि मैंने,
बच्चों को ख़ूब पढ़ाया।
पढ़ा लिखा कर उन्हें
डॉक्टर और इंजीनियर बनाया।
पढ़े लिखे लोगों से इस जहां को सजाया।
पर क्या सच में उन्हें इंसान बना पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा, 
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .
 
शिक्षक हूँ, शिक्षा देना काम है मेरा।
मैंने अपने कर्तव्यों को बख़ूबी निभाया।
बच्चों को वर्णमाला व ABCD
ख़ूब रटवाया।
पर क्या सच में उन्हें शिक्षित कर पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .
 
गणित के शिक्षक होने की तो
ग़ज़ब शान है मेरी।
शिक्षा जगत में अलग पहचान है मेरी।
मैंने बच्चों को खूख़ूब गणितीय 
ट्रिक्स व फ़ॉर्मूला सिखाया।
पर क्या आत्मा को परमात्मा से जोड़ने
का एक सूत्र भी बता पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .
 
पर्यावरण के शिक्षक होने का गर्व है मुझे।
पर्यावरण संरक्षण के पाठ को मैंने 
ख़ूब पढ़ाया।
बच्चों को प्राकृतिक सौंदर्य का बोध कराया।
पर क्या इंसानियत का एक पौधा भी लगा पाया।
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .
 
साहित्य के शिक्षक की तो बात ही मत पूछो।
क़िस्सों,कहानियों व कविताओं को 
ऐसे रटवाया।
ख़ुद को उन नौनिहालों का भाग्य विधाता बताया।
पर क्या सच में उनका चारित्रिक निर्माण कर पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

shaily 2021/09/04 06:44 PM

बहुत सही, भरपूर खुराक दी है, काश लोग इसे समझ सकते।

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

गीत-नवगीत

सामाजिक आलेख

किशोर साहित्य कहानी

बच्चों के मुख से

चिन्तन

आप-बीती

सांस्कृतिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

चम्पू-काव्य

साहित्यिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं