भूख (डॉ. शैलजा सक्सेना)
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. शैलजा सक्सेना1 Nov 2020 (अंक: 168, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
आलू की बोरी के जैसे वह धड़ाम से गिरी थी सड़क पर। उसे इस तरह से धक्का देकर फेंक देने वाली कार, सैकेंडों में आगे निकल चुकी थी। कुछ देर ऐसे ही अचेत पड़ी रही। थोड़े मैले-कुचैले से कपड़े, धूल की परतों में लिपटा हुआ चेहरा, हाथों और गर्दन पर कुछ खरोंचों के निशान . . .! आसपास के लोगों ने चौंक कर, जाती हुई कार को देखा, फिर सड़क पर पड़ी हुई उस भिखारन जैसी औरत को भी देखा और एक क्षण के बाद ही अपनी हैरानी पर क़ाबू पाकर वापस अपने-अपने कामों में लग गए। किसी के पास उस औरत को देने के लिए दो मिनट का समय या फ़िक्र नहीं थी और फिर औक़ात भी तो चाहिए इस फ़िक्र को पाने के लिए! कोई अच्छे घर की, साफ़-सुथरे कपड़े पहने हुए औरत वहाँ गिरती तो उनकी चिंता का, ख़बर का या उनके समय का हिस्सा बनती। इस भिखारन जैसी औरत को वे अपनी चिंता और समय भीख में नहीं दे पाए।
जाने कितनी देर ऐसी ही अचेत पड़ी रही वह! जब होश आया तो पहले तो उसे कुछ समझ ही नहीं आया कि वह कहाँ है? फिर धीरे-धीरे अपने चोट खाए बदन को सँभालती वह उठी। हाथ और चेहरे की मिट्टी को झाड़ते हुए उसने आसपास देखा और जाना कि वह बाज़ार की सड़क पर पड़ी है। चेहरा साफ़ करते हुए, उसके होठों और जीभ ने आधे खाए डबल को याद किया जिसे दिखाकर वे लोग उसे गाड़ी में बिठा ले गए थे। अपनी थेगली लगी धोती को समेट कर वह खड़ी हो गई। कमर और नीचे बहुत दर्द था। उसे अपने साथ हुई कोई बात याद नहीं आ रही थी, आँखों के सामने केवल वह खाना था जिसे वह पूरा खा नहीं पाई थी, अगर वह मिल जाता तो . . .! तीख़ी भूख मुँह से पेट तक खिंची, पेट खरौंच रही थी। चार-पाँच क़दम चली तो अपना फटा झोला भी दिखाई दिया साथ ही काग़ज़ में लिपटा डबल भी, जो खुलकर आधा सड़क पर आ गिरा था। उसने लगभग लपक कर पहले डबल और फिर झोला उठाया और डबल से धूल झाड़ती, फ़ुटपाथ के किनारे बैठ कर उसे खाने को हुई। होंठ तक बर्गर लाने के साथ ही उसकी रीढ़ की हड्डी के नीचे से सिर के ऊपरी नोक तक दर्द की तेज़ लहर बदन में फैल गई तो वह तड़प उठी। हाथ में पकड़े बर्गर को उसने फिर धूल में फेंक दिया और अपने गर्दन को दोनों हाथों से पकड़ कर रीढ़ की हड्डी को दबाने लगी। उसने बर्गर को नफ़रत से देखते हुए मुँह घुमा कर थूक दिया और बुदबुदाई- "मुझको खा कर, मुझे खाना देने की हिम्मत करते हैं भुक्खड़! नीच!!"
पास खड़े खाए-अघाए, भुक्खड़ लोगों की निगाहें शर्म से झुक गईं।
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