समय की पोटली से
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शैलजा सक्सेना15 Jul 2016
आज समय की पोटली से
एक घंटा चुराया...
और तुम्हारी यादों की छाँव तले,
तुम्हारी बातों की चादर पर लेटे-लेटे
मन ही मन सोचा कि
अगर ऐसा होता, तो कैसा होता
अगर वैसा होता तो कैसा होता!
सूरज ने देखा मुझे मगन मन
ख़ुश हो दे गया थोड़ी रोशनी और,
हवा ने सहला दिया मस्तक
फूलों ने मुठ्ठी भर ख़ुशबू
बिखरा दी अंतस में,
और मिट्टी ने उगने दिये सपनों के अंकुर।
एक घंटा जीने के लिये
इतना कुछ
दे सकता है...
जानती तो
रोज़ करती कोशिश,
इस चोरी की!!
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