ये और वो
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शैलजा सक्सेना15 Dec 2019 (अंक: 146, द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)
वो सोये,
एक दूसरे के खाली स्थानों में समा कर..
वो सोये,
एक दूसरे के दु:ख में समा कर..
वो सोये,
एक दूसरे के सपनों में समा कर!!
ये बिखरी,
उसने बाँध लिया..
वो बरसा,
इसने अपना सीना आगे कर दिया..
ये बोली,
तो उसने कान अँजुरि कर दिये…
और पी गया डैश, कॉमा, विरामचिन्ह तक!
वो बोला,
तो लिख लिया इसने रोमकूपों पर…॥
वो फिसला,
तो यह चट्टान बन गई,
यह बहकी,
वो समंदर बन गया…
सब समेट लाया…॥
अब कौन बताये,
किसने क्या खोया,
किसने क्या पाया!!
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