भाषा की खोज
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शैलजा सक्सेना20 Feb 2019
पूरा दो साल का होने को आया बच्चा
अभी भी चुप है
सबको फिकर है...
बोलना शुरू किया क्या??
बच्चा, चुप देखता है,
समझता है सब,
समझा भी देता है,
बस.. भाषा से बचता है।
समझ नहीं पाता,
बोले तो कौन सी भाषा..
वो जो टी. वी. के रंगीन पर्दे पर बँदूक लिये दौड़ती है?
या जो पिता की नाक और आँखों के बीच टँगी रहती है?
या जो माँ के होंटो और ठोढ़ी पर काँपती है?
भाषा, जो पड़ोसन की नाचती-जाँचती आँखों में होती है?
भाषा, जो अपने से बड़े पड़ौसी बच्चे के धक्के में होती है?
भाषा, जो घर काम करने आई औरत की थकान में होती है?
या, दादी की कठोर चुप्पी में होती है?
या, बाबा की अकेली बुड़बुड़ाहट में होती है?
बच्चा सब देखता है
फूल-पत्ते, चिड़िया-आसमान
माँ-पिता, दादी-बाबा, टी.वी., महरी, पड़ौसी
इतनी भाषाओं के बीच कर नहीं पाता तय
अपनी भाषा..
तुतला कर रह जाता है..`
सबको फिकर है, बच्चा बोलता नहीं है कुछ।।
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