मिलन
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शैलजा सक्सेना23 Feb 2019
कागा बैठ अटरिया बोला
आती बिटिया खोल किवाड़ें
सूने द्वार लगेंगे हँसने
दीवारें कल्लोल करेंगी
खिड़की भी गुपचुप झाँकेंगी
हम दोनों में होंगी बातें............
रातें दिन सी जगमग होंगी
थम-थम कर दिन निकलेगा
नन्हें-मुन्हें तारे चमकीले
घर-बिस्तर सोने आयेंगे
चाँदी सी होंगी सब रातें.......
बरसों बाद मिलेंगे जब सब
कितनी ही तो बातें होंगी,
बीते – रीते दिन की कह-सुन
उलझी – सुलझी रातें होंगी।
चेहरे पर मेरे कुछ आँखें
नया-पुराना ढूँढ ही लेंगी
माँ-पापा के चेहरे पर मैं
पिछली खिली हँसी देखूँगी।
अनबोला, बोला हो जाता
फिर भी कितना कुछ रह जाता
अनबोली बातों की पेटी
बोलो तुमने कहाँ छुपाई
उन बातों की बोलो बातें
जो पड़ती हैं नहीं दिखाई।
दूरी देश – काल की आये
हृदय कभी ढकने न पाये
उम्र-राह पर चलता है तन
हृदय-उम्र ढलने न पाये।
तन पर समय खेलता चौपड़
मन उद्वेलित शिशु सा औघड़
मिलन हमारा बाँह पसारे
मिले गले फिर द्वार तुम्हारे।
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