कोई बात
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शैलजा सक्सेना23 Feb 2019
कुछ न कुछ तो बात होगी,
क्यों दुखों की मार खा भी,
चाहता जीवन है प्राणी
कुछ न कुछ तो बात होगी
ऊँचे-ऊँचे वृक्ष हों या
झड़बेरियों की छोटी झाड़ी,
पात हर पतझड़ में झड़ते,
मोटे तने या जड़ तक भी कटते,
कोंपलें फिर नन्हीं, कोमल,
मुस्कुरा जीवन दिखातीं।
कुछ न कुछ तो बात होगी॥
दुख से ज्यों दम घुटा सा,
फिर भी दु:खी मरता नहीं है,
भूख से तड़पता, पर
दिनों तक साँस चलती,
यों लगा कई बार - स्वयं ही
अंत जीवन का करें पर,
फिर सरकती ज़िन्दगी,
हाथ पकड़े हम सभी का।
कुछ न कुछ तो बात होगी॥
क्या ऐसा इस धरा पर,
बाँधता जो नयन, मन को?
क्या अनिश्चित राह - मृत्यु,
भय दिखाती हम सभी को?
क्या बात इतनी भर है कि
पार जीवन हम न जाने,
या पँच तत्त्वी मोह-मारा,
चाहता हर चीज़ छूना
साँस में भर हवा,
नयन से हर दृश्य छूना।
कुछ न कुछ तो बात होगी॥
जग-चित्र में भूला, भ्रमा सा
योनियों रहता भटकता,
तीन-तापों में जला पर,
क्या कभी उनसे उभरता?
दृष्टि में आकार विष्णु,
शिव, ब्रह्म का समाए,
वासना से हृदय मंडित,
माया रानी को है भजता,
यह तेरा संसार क्यों असार
मुझे पल भर न लगता?
क्यों हृदय मेरा तेरे इस
चित्र में ऐसा समाया?
पार जा इसके तुझे
कभी न मैं ढूँढ पाया,
कुछ न कुछ तो बात होगी॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
- अंतिम अरण्य के बहाने निर्मल वर्मा के साहित्य पर एक दृष्टि
- अमृता प्रीतम: एक श्रद्धांजलि
- इसी बहाने से - 01 साहित्य की परिभाषा
- इसी बहाने से - 02 साहित्य का उद्देश्य - 1
- इसी बहाने से - 03 साहित्य का उद्देश्य - 2
- इसी बहाने से - 04 साहित्य का उद्देश्य - 3
- इसी बहाने से - 05 लिखने की सार्थकता और सार्थक लेखन
- इसी बहाने से - 06 भक्ति: उद्भव और विकास
- इसी बहाने से - 07 कविता, तुम क्या कहती हो!! - 1
- इसी बहाने से - 08 कविता, तू कहाँ-कहाँ रहती है? - 2
- इसी बहाने से - 09 भारतेतर देशों में हिन्दी - 3 (कनाडा में हिन्दी-1)
- इसी बहाने से - 10 हिन्दी साहित्य सृजन (कनाडा में हिन्दी-2)
- इसी बहाने से - 11 मेपल तले, कविता पले-1 (कनाडा में हिन्दी-3)
- इसी बहाने से - 12 मेपल तले, कविता पले-2 (कनाडा में हिन्दी-4)
- इसी बहाने से - 13 मेपल तले, कविता पले-4 समीक्षा (कनाडा में हिन्दी-5)
- कहत कबीर सुनो भई साधो
- जैनेन्द्र कुमार और हिन्दी साहित्य
- महादेवी की सूक्तियाँ
- साहित्य के अमर दीपस्तम्भ: श्री जयशंकर प्रसाद
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
- अतीत क्या हुआ व्यतीत?
- अनचाहे खेल
- अभी मत बोलो
- अहसास
- आसान नहीं होता पढ़ना भी
- इंतज़ार अच्छे पाठक का
- एक औसत रात : एक औसत दिन
- कठिन है माँ बनना
- कविता पाठ के बाद
- कोई बात
- कोरोना का पहरा हुआ है
- क्या भूली??
- गणतंत्र/ बसन्त कविता
- गाँठ में बाँध लाई थोड़ी सी कविता
- घड़ी और मैं
- जीवन
- जेठ की दोपहर
- तुम (डॉ. शैलजा सक्सेना)
- तुम्हारा दुख मेरा दुख
- तुम्हारे देश का मातम
- पेड़ (डॉ. शैलजा सक्सेना)
- प्रतीक्षा
- प्रश्न
- प्रेम गीत रचना
- बच्चा
- बच्चा पिटता है
- बच्चे की हँसी
- बोर हो रहे हो तुम!
- भरपूर
- भाषा की खोज
- भाषा मेरी माँ
- माँ
- मिलन
- मुक्तिबोध के नाम
- युद्ध
- युद्ध : दो विचार
- ये और वो
- लिखने तो दे....
- लौट कहाँ पाये हैं राम!
- वो झरना बनने की तैयारी में है
- वो तरक्क़ी पसंद है
- वो रोती नहीं अब
- शोक गीत
- सपनों की फसल
- समय की पोटली से
- साँस भर जी लो
- सात फेरे
- सूर्योदय
- स्त्री कविता क्या है
- हाँ, मैं स्त्री हूँ!!
- हिमपात
- ख़ुशफहमियाँ
- ग़लती (डॉ. शैलजा सक्सेना)
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक चर्चा
नज़्म
कहानी
कविता - हाइकु
कविता-मुक्तक
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं