कोरोना का पहरा हुआ है
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शैलजा सक्सेना1 Apr 2020 (अंक: 153, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
सड़कों का मन ज़रा ऐंठा हुआ है।
बाद अर्से, साथ घर बैठा हुआ है।
पाँवों की हड़बड़ी बंद है तालों में,
समय पसरा बिस्तरों में, आँगन में,
तितलियों सी मँडराने लगी पुरानी कथाएँ,
पुष्पगंधी, बचपनी, बिसरी हवाएँ,
बात दुनिया भर की ले कर उड़ रही हैं,
बच्चे, बड़ों के संग बैठे दाएँ-बाएँ,
युगों का इतिहास जैसे खुल रहा है।
बाद अर्से, साथ घर बैठा हुआ है॥
मृत्यु के बादल अगर मँडरा रहे हों,
सहनशक्ति कदाचित बढ़ ही जाती,
कौन जाने, कौन सा क्षण आख़िरी हो,
मति भूल दुख-वैर, सब संग त्राण पाती।
बात बच्चों को भी लगती मीठी, भली सी
क्योंकि पढ़ने को, नहीं कोई कह रहा है।
बंधनों में भले आज, हम सिकुड़े-बैठे
ताप सिगड़ी, घर संग-संग सो रहा है।
बाद अर्से साथ, घर बैठा हुआ है॥
एक नई दृष्टि मिल रही जैसे हमें अब,
देखते हैं, जोड़ते क्या? क्या टूटता था?
इस मिली फ़ुरसत में फिर तौल लें हम
देख लें क्या तोड़ना, क्या जोड़ना है।
थाम कर मति-गति, सोचें तृप्ति से हम,
प्राप्त जो भी रहा, कितना भला है।
आँकड़ों को छोड़, देखें आइने में,
है वही यह आदमी जो मीलों चला है।
एक अनदेखे विषाणु का त्रास जग पर,
इस सदी की प्रगति से जेठा हुआ है।
बाद अर्से, साथ घर बैठा हुआ है॥
परछाइयाँ ख़त्म होंगी नाराज़गी की,
इबारतें प्यार की जो हम लिखेंगे,
साथ इतने दिन, घर में बंद होंगे
अनकहे डर, क्रोध भी सब कहेंगे।
धैर्य रख, खुले मन जो बात बाँचें,
संबंध फिर से मधुरता को खोज लेंगे।
एक नया आकाश होगा, बाद इसके
फिर नए परवाज़ से पंछी उड़ेंगे।
काल के इस विषम में, ’सम’ ढूँढ़ने को
विद्वान हर एक देश का पैठा हुआ है।
बाद अर्से, साथ घर बैठा हुआ है॥
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