अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रेम गीत रचना

तुम प्रणय के गीत रचना
बस प्रणय के गीत रचना
       यह प्रणय इतना मधुर हो
       भूल जाऊँ दुख सारे,
       यह प्रणय इतना सरल हो
       हर विषमता, टूट हारे,
       इस प्रणय की सुगंधि
       दुर्गंध जीवन की मिटाए,
       यह प्रणय इतना प्रबल हो
       छल कपट जड़ तक जलाए
फिर रचें जीवन दोबारा,
तुम प्रणय के गीत रचना।।

गीत, दुख के, शोक के
गा रहा रोता हृदय यह
गीत कब से पीड़ा मनुज की
बतला रही सम्वेदना यह
गीत कब से शांति के मैं,
युद्ध भेरी को सुनाता
गीत गाता निर्धनों के
धनवान को हूँ मैं हिलाता
पर नहीं कुछ भी बदलता,
जग चला जाता उसी पथ,

भूल कर सब शेष रचना।
तुम प्रणय के गीत रचना।।

गीत कितने अब तक रचे
गीत कितने ही सुनाए,
भाव में सब श्रेष्ठ थे
पर रुचे किसको? बताएँ
चाहते सब सत्य से
कुछ देर को दूर जाएँ
सत्य के ही मर्म को
कर सुनहरा कवि दिखाएँ
शब्द - उपमा, छंद - शैली

द्वंद्व से इनके है बचना।
तुम प्रणय के गीत रचना।।

हो प्रणय गहरा, अलिप्त वह,
       हो समाधि सा अडिग वह,
हो प्रभा में चन्द्र सम वह,
        ताप में आदित्य सा वह,
हो हृदय के शूल में
        भी मुस्कुराता फूल सा वह,
हो नयन में औचक उमड़ कर
        थम, रह गए अश्रु सा वह
हो अधर की मंजु स्मिति
         गीत जो कुछ गुनगुनाए
हो मिलन की चाह जैसा
         ले विरह की पीर आए,
हो सरल निश्छल मगन
        माँ के हृदय की प्रीति सा वह
जागती आँखों में उमड़े
       कोई सपन जैसे सलोना
है मगन अपने में कोई
        भूल बैठे जग का होना
यह प्रणय हो शान्त बहती
        पर्वतों के बीच नदिया,
रात पूनों की हो शीतल
        दीप्त मावस में दिया सा
हर हृदय की चाह सा यह
      काँपती सी सुबुक कोमल
भावना की मधुर लहरी
     उठ बाँध ले जो विश्व सारा,
उठ सके जन, जो जहाँ भी
      मानता हो खुद को हारा,

गीत तू ऐसा ही रचना
बस प्रणय का गीत रचना।।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा

साहित्यिक आलेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक चर्चा

नज़्म

कहानी

कविता - हाइकु

कविता-मुक्तक

स्मृति लेख

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. क्या तुमको भी ऐसा लगा