हाय
कथा साहित्य | लघुकथा मुकेश कुमार ऋषि वर्मा1 Jul 2019
मोबाइल फोन पर हरेलाल गिड़गिड़ाये जा रहे थे। उनकी आँखों में आये आँसू और मुरझाये चेहरे, सूखे होठों से साफ़ पता चल रहा था कि हरेलाल पर दिन दहाड़े बिजली गिरी है। चौके में बैठी हरेलाल की धर्मपत्नी शरबती देवी को भी आभास हो गया, उनके घर में किसी बहुत बड़ी विपत्ति ने दस्तक दे दी है।
फोन कट चुका था, हरेलाल जहाँ खड़े थे वहीं ज़मीन पर धड़ाम हो गये। भागकर शरबती देवी अपने पति के पास आ गई। उन्हें सहारा देकर बिठा दिया।
“क्या हुआ ? क्या बात है... मुझे भी तो बताओ?” रोते हुए शरबती देवी ने हरेलाल से पूछा।
अटकते हुए बैठे गले से, बड़ी मुश्किल से धीमी आवाज़ निकली - “लड़के वालों ने रिस्ता तोड़ दिया है, लड़के का नम्बर पुलिस में आ गया है। बोलते हैं दस लाख की व्यवस्था हो तो बात करना। वर्ना कोई दूसरा लड़का ढूँढ़ लो अपनी लड़की के लिए। अपनी बराबरी का”...
थोड़ी दूर खड़ी घर के कोने में मधु सारी बातें सुन रही थी। साहस जुटाकर हरेलाल व शरबती देवी के पास आकर बोली - “आप काहे रोत हो बाबू जी... हमाई किस्मत में वो घर नाहीं हतो, तुम कौऊ दूसरो घर देखि लो... का वो ही एक कुंवर बचो है जा धरती पे।”
तीन दिन बाद पता चला कि लड़के के बाप का भयंकर एक्सीडेंट हो गया है। दोनों पैर रहे नहीं, सिर में गम्भीर चोटें हैं। ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। दस लाख से अधिक डाक्टरों की जेब में जा चुके हैं और अभी कितने जायेंगे ये तो आने वाला समय ही बतायेगा।
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