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सावन में

 

काली-काली घटा छा रही अंबर में 
घनी अँधेरी रात बिजली कौंध रही सावन में
करवट बदल-बदल तिरिया जल रही यौवन में
मोर, पपीहा चहक-चहक कहीं बहक न जायें सावन में 
 
बाग़ों में झूला पड़ गये, यौवन गाए मस्ती में
चहुँ ओर हरियाली हँसती-खिलखिलाती सावन में
जब अंग-अंग भीगा सिहर गई वो सावन में 
लबालब होकर ताल-तलैया झूम उठे सावन में 
 
मेघों की बूँदें चाँदी सी बरस रहीं दिशा-दिशा में
नैन मिले सुनैना से तो हृदह घायल हुआ सावन में
मस्ती भर-भर मस्ती में मेंढक टर्राये सावन में 
प्रियवर की याद उर झुलसाये बरसते सावन में 
 
भँवरा पगलाया रंग-बिरंगी कलियों महक में
कर-कर आलिंगन तान छेड़ता प्रेमालाप दिखाता सावन में
क़ुदरत बनी अति मनोहारी सुंदर सावन में
सतरंगी परिधान ओढ़कर गोरी शर्माती सावन में
 
वो पंख खोल आज़ादी से उड़ना चाहती सावन में 
पिया से प्रेमभरी दो बातें करना चाहती सावन में

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