भोर
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता मुकेश कुमार ऋषि वर्मा1 Apr 2023 (अंक: 226, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
भोर हुई चिड़ियों ने गाया गाना
बिखर गया चहुँ ओर उजाला
नव उमंग से मोर नाचते
नई-नवेली कलियों पर भँवरे मँडराते।
पूरब में सूरज खड़े लिए धूप का रथ
देखो हुआ अँधेरा सारा छू-मंतर
पेड़ों की डालों पर फुदक रही गौरैया
छत पर दाना बिखराता है रामू भैया।
सारे जग को रोशन करता सूरज एक
ठीक समय पर आकर रोज़ जगाता
हमसे बदले में कुछ नहीं पाता
फिर भी धूप सुनहरी हमको दे जाता।
सूरज के स्वागत में जल्दी उठ जायें,
झटपट अपनी दिनचर्या पूर्ण कर जायें
नव किरणों के साथ नव किरणों सा मुसकायें,
मत करना आना-कानी, इसी तरह रोज़ जग जायें।
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