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मंत्रीजी की पॉवर

वो सब्ज़ी के ठेले को धक्का मारता हुआ मुख्य सड़क से चौराहे पर पहुँचा ही था कि पीछे से उसकी पीठ पर एक ज़ोरदार डंडा पुलिस के सिपाही ने मार दिया। 

“मेरा क्या क़ुसूर माई-बाप,” वो एक हाथ से अपनी पीठ सहलाता हुआ बोला। 

“सारा शहर बंद है मंत्री जी के शोक में, और तू साला दुकान लिए घूम रहा है,” सिपाही आँखें दिखाते हुए बोला। 

“मुझे इस ख़बर की कोई जानकारी नहीं थी, मैं . . . मैं! वापिस घर जाता हूँ,” वो गिड़गिड़ाया। 

उसने सब्ज़ी का ठेला घर की ओर मोड़ दिया। वो रास्ते भर सोचता रहा . . . तीन महीने पहले मंत्रीजी रैली निकाले थे, तब भी ऐसे ही सड़क किनारे पुलिस ने उसे मारा और आज ससुरा निपट गया; तब भी पुलिस पीट रही है। भई मंत्री जी तो मरने के बाद भी पॉवर में रहते हैं। उन्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है जीने-मरने से।

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