बाबाओं की फ़ौज
काव्य साहित्य | कविता मुकेश कुमार ऋषि वर्मा15 Jul 2024 (अंक: 257, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
भारत में खड़ी हो गई बाबाओं की फ़ौज
दिखा-दिखाकर तरह-तरह के करतब
भोली जनता के पैसों से लेते मौज
भाँति-भाँति के बाबा
लाखों-करोड़ों इनके अनुयाई
अरबों-खरबों का मिले दान
और ऊपर से मिलता अति मान-सम्मान
फिर ये बाबा अहंकार में आ जाते हैं
स्वयं को ही भगवान मान बैठते हैं
करते उटपटाँग काम
नियम-क़ानूनों की उड़ाते धज्जियाँ
और भोली जनता अव्यवस्थाओं के चलते
जान गँवा बैठती है
पल भर का इन बाबाओं को पता नहीं
और युगों-युगों पर देते ज्ञान
भोली जनता बाबाओं को मत मान
स्वयं को ही पहचान।
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