रमधनिया
कथा साहित्य | लघुकथा मुकेश कुमार ऋषि वर्मा1 May 2019
रमधनिया ने ठान लिया था कि वो अपने शराबी-जुआरी पति को आज सबक सिखा कर ही मानेगी। बेचारी रमधनिया मध्यप्रदेश से चलकर आगरा मज़दूरी करने आई थी। सुबह से शाम तक खेतों में आलू बीनती तब जाकर प्रतिदिन सौ-सवा सौ रुपये कमा पाती। साथ में दो बेटियाँ भी थीं, इसलिए खाने-पीने का ख़र्च भी ज़्यादा था। पति काम तो करता था पर सारी कमाई जुए-शराब में उड़ा देता और ऊपर से रमधनिया के कमाये पैसों पर भी हक़ जमाता।
देर रात टुन्न होकर रमधनिया का पति आया तो दोनों में झगड़ा हो गया। झगड़ा इतना बढ़ गया कि झगड़े की ख़बर ठेकेदार को पता चल गई। उसने तुरन्त सौ नं. पर सूचना दी, कुछ ही समय बाद सौ नं. की गाड़ी आ गई। पुलिस आने से झगड़ा ख़त्म हो गया और पुलिस ने दोनों का राज़ीनामा करा दिया परन्तु राज़ीनामे के बदले दो हज़ार रुपए रमधनिया को गँवाने पड़े। वैसे दो हज़ार बचाने के लिए रमधनिया ने उन पुलिस वालों के आगे ख़ूब हाथ-पैर जोड़े, लेकिन उन निर्दइयों को तनिक भी तरस नहीं आया। सच भी है वर्दी पहनकर कोई देवता नहीं बन जाता।
रमधनिया अपने तिरपाल के बने झोपड़े में पड़ी-पड़ी सोच रही थी, काश वो अपने शराबी पति से न लड़ती और हज़ार- पाँच सौ उसे दे देती तो कम से कम कुछ पैसे तो बच ही जाते...।
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