टिकट
कथा साहित्य | लघुकथा मुकेश कुमार ऋषि वर्मा1 May 2023 (अंक: 228, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
चुनावी बिगुल बज चुका था। बड़ी-बड़ी पार्टियों से टिकट प्राप्त करने के लिए उठा-पटक होने लगी। टिकट प्राप्ति के लिए ऐसे पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी इच्छा ज़ाहिर की; जिन्होंने अपनी आधी से ज़्यादा उम्र पार्टी के झंडे उठाने, पोस्टर-बैनर चिपकाने, दरी बिछाने व बड़े नेताओं के तलवे चाटने में कभी कोई आनाकानी नहीं की।
परन्तु इन बेचारे समर्पित पार्टी कार्यकर्ताओं को क्या पता कि टिकट प्राप्त करने के लिए एक विशेष योग्यता की ज़रूरत होती है, ख़ासकर भारतीय वर्तमान राजनीति में . . .
“उम्मीदवार धनकुबेर होना चाहिए, कम से कम पचास-सौ मुक़द्दमे उसके नाम में पंजीकृत होने चाहिएँ। झूठ—ईमानदारी से बोल लेता हो। जनता को बहुत प्यार से गुमराह कर सकता हो। दंगे भड़काने व जातिवाद का ज़हर घोलने में माहिर हो। माहौल के हिसाब से मुखौटे बदल लेता हो।”
उपर्युक्त योग्यता समर्पित कार्यकर्ता में तो है नहीं इसलिए, अब बेचारा तन-मन-धन से पूर्ण समर्पित कार्यकर्ता टिकट न मिलने पर स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहा है। बड़ा राजनीतिज्ञ बनने का उसका सपना टूटकर काँच की तरह बिखर चुका है।
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