मंत्रीजी का योग
कथा साहित्य | लघुकथा मुकेश कुमार ऋषि वर्मा1 Jul 2019
सुबह के आठ बज चुके थे परन्तु मंत्रीजी अभी भीऔंधे मुँह बिस्तर पर पड़े-पड़े अजीबो-ग़रीब आवाज़ें निकाल रहे थे। तभी उनका निजी सहायक आ धमका -
"सरजी-सरजी! आठ बज गए और आज विश्वयोग दिवस का कार्यक्रम है। आपको मुख्य योगाचार्य की भूमिका निभाने जाना है।"
मंत्रीजी रेलगाड़ी वाले हॉर्न बजाते हुए उठ बैठे। आलस्य भरी जम्हाइयाँ लेते हुए बोले - "अरे सम्पत! तुम भी सुबह-सुबह आ जाते हो, ठीक से सोने भी नहीं देते। तुम्हें तो पता ही है रात देर तक जागना पड़ा, सांसद भोज का आयोजन जो किया था।"
"वो सब तो ठीक है, लेकिन सोशल मीडिया पर लोग आपके इस आयोजन को मृत्युभोज बता रहे हैं," सम्पत कुछ डरते हुए बोला।
"पर... हमने तो अपने ख़रीदे मीडिया को बिहार भेज दिया था, अपने पक्ष में ख़बर दिखाने के लिए," मंत्रीजी कुछ चिन्तित होते-होते हुए बोले।
"लोगों ने तो आपके भेजे मीडिया को गिद्ध घोषित कर दिया... गिद्ध!"
"क्या बकते हो?" मंत्रीजी लाल-पीले होते हुए सम्पत पर चिल्ला पड़े।
झिझकते-हकलाते हुए जी-हज़ूरी वाले लहज़े में सम्पत बुदबुदाया - "अरे साहबजी... लघु मीडिया ने मरते बच्चों की तस्वीरें उजागर कर दीं और वे यहीं नहीं रुके; रोते-चीखते, बिलखते माँ-बाप की तस्वीरें भी देश-दुनिया को दिखा दीं। लोगों में ग़ुस्सा है।"
"हुँ... ग़ुस्सा है, जब तक वोट देने का समय आयेगा, सब भूल जायेंगे," मंत्रीजी कुटिल हँसी हँसते हुए बोले।
"अच्छा ठीक है, ये बस तो चलता रहा है, चलता रहेगा, ग़रीब हैं, मेरा ज़्यादा से ज़्यादा क्या कर लेगें, दो-चार गाली देंगे अपनी झोपड़ियों में बैठकर। सब बेकार की बातें छोड़ो... योग करने जाना है। हम तैयार होते हैं।"
मंत्रीजी के योग की देश-दुनिया के न्यूज़ चैनलों, बड़े-बड़े समाचार पत्रों और ख़ासकर मंत्रीजी के चैले-चपाटों ने ख़ूब सराहना की।
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