पहाड़
काव्य साहित्य | कविता मुकेश कुमार ऋषि वर्मा15 Dec 2021 (अंक: 195, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
हरे-भरे पेड़,
हरी-हरी नरम घास,
नाचते मोर-चहकती चिड़ियाँ,
फूलों पर मँडराते भँवरे,
हवा में इठलाती तितलियाँ
पहाड़ों को सुंदर/
बहुत सुंदर बनाते हैं।
परंतु पहाड़ अपने सीने में
असीम दर्द छिपाए हुए हैं
पहाड़ हमें दिखते—
हँसते-मुस्कराते
दूर से . . .
हमने पहाड़ को बहुत दर्द दिया है
विकास के नाम पर!
हमने अपने स्वार्थ के लिए
कमज़ोर कर दिया पहाड़ को।
वे टूट रहे हैं, तिल-तिल मर रहे हैं
अपने आँसू नहीं दिखा सकते किसी को—
पहाड़ है न इसलिए . . .
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