विधायक जी का भंडारा
कथा साहित्य | लघुकथा मुकेश कुमार ऋषि वर्मा1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
भंडारा बहुत बड़ा था। लोग चटकारे ले-लेकर विभिन्न पकवानों का लुत्फ़ उठा रहे थे। उक्त भंडारे के आयोजक क्षेत्रीय विधायक जी थे। भंडारे में दुनिया भर के साधु-संत, हज़ारों-हज़ार लोग भोजन पा रहे थे। साधु संत तो भोजन के साथ-साथ दान-दक्षिणा भी पा रहे थे।
इस भंडारे के आयोजन की सलाह विधायक जी के अति सम्मानित गुरु चटोरानंद ने दी थी।
चटोरानंद ने अपने कमाऊ शिष्य (विधायक जी) से कहा, “चेले! अगर तू एक बहुत बड़ा भंडारा करे और साधु-संतों को दान दक्षिणा दे, हवन-पूजन, यज्ञ, कथा भी करे तो तुझे सीट उसी पार्टी से मिलेगी, जिसकी हवा अभी चल रही है। लोग भी तेरा खाकर तुझे वोट करेंगे। साधु संतों को दान-दक्षिणा देने से तेरे पाप कटेंगे। तूने जो काली कमाई की है, उसमें से अगर कुछ हिस्सा पुण्य कार्यों में ख़र्च होगा तो तुझे अवश्य पुण्य प्राप्त होगा!”
विधायक जी अपनी मुंडी हिलाते हुए चटोरानंद के चरणों में लोटपोट हो गये।
भंडारा संपन्न हो गया, परन्तु विधायक जी को टिकट न मिल सका। सब करे-धरे पर पानी फिर गया। चटोरानंद मोटा माल मारकर अपने मठ को वापस लौट गया। और विधायक जी अब पूर्व विधायक बनकर गाँव-गाँव, गली-गली धूल फाँकते फिर रहे हैं, ताकि भविष्य में पुनः उनका भाग्य उदय हो सके।
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