पछतावा
काव्य साहित्य | कविता मुकेश कुमार ऋषि वर्मा1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
पल-पल बीत रहा
मेरा क्षण-क्षण बीत रहा
मेरा जीवन तिल-तिल घट रहा
मैं नित-नित मृत्यु के नज़दीक जा रहा . . .
मैंने अपने देखे /
पराये देखे /
मरते देखे /
जलते देखे।
अपना सर्वस्व लुटाकर
अब मैं पश्चाताप में जलता हूँ
सोचा था—
कुछ बड़ा करूँगा
जीवन सफल बनाऊँगा
ज्ञानराशि संचित कर ख़ूब लुटाऊँगा
कवि-लेखक बन माँ भारती के गुण गाऊँगा
राष्ट्र के उत्थान में कुछ योगदान मैं भी दे जाऊँगा
पर मैं,
कुछ कर न सका, कुछ बन न सका
अब मेरा हृदय रोता है
मैं कहता हूँ सबसे
मैं जो कर न सका
अब पछताता हूँ—
तुम जो करना चाहो
ठीक समय पर कर लेना
अपना जीवन सफल बना लेना।
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